नई दिल्ली. राष्ट्र सेविका समिति के प्रबुद्ध वर्ग (मेधाविनी सिंधु सृजन) दिल्ली प्रांत ने वंदनीय मौसी जी लक्ष्मीबाई केलकर के जन्म दिवस आषाढ़ दशमी (संकल्प दिवस) पर आभासी रूप से वेबिनार आयोजित किया.
सुलभा देशपांडे ने कहा कि अर्ध शक्ति से राष्ट्र निर्माण नहीं हो सकता. डॉक्टर हेडगेवार जी के समक्ष जब लक्ष्मीबाई केलकर जी ने यह प्रश्न किया कि आप के संगठन में केवल पुरुष ही हैं और ऐसी स्थिति में राष्ट्र का निर्माण नहीं होगा क्योंकि आपके पास अर्ध शक्ति है. हेडगेवार जी ने कहा कि अगर आप महिलाओं को जागृत करना चाहती हैं तो स्वयं से ही महिलाओं के लिए संगठन की स्थापना करें.
महात्मा गांधी के आदर्शों का भी लक्ष्मीबाई केलकर पर बहुत प्रभाव रहा और वर्धा में उनके आश्रम में भी जाती थीं और वहीं से उन्होंने रामायण के महत्व को समझ कर बाद में स्थान-स्थान पर माता सीता के चरित्र व रामायण पर व्याख्यान दिए. देश के विभाजन के समय लक्ष्मीबाई केलकर कराची पहुंचीं और सेविकाओं को विषम परिस्थितियों का साहस के साथ सामना करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने महिलाओं के जागरण के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया.
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि साध्वी निरंजन ज्योति जी (राज्यमंत्री उपभोक्ता, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय भारत सरकार), मुख्य वक्ता माननीय सुलभा देशपांडे तथा विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मी गौतम, किरण चोपड़ा पंजाब केसरी निदेशक, मनु कटारिया (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद), आशा दीदी (उत्तर क्षेत्र पालक अधिकारी) सहित अन्य उपस्थित रहे.
डॉ. लक्ष्मी गौतम ने लक्ष्मीबाई केलकर जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने अपने वैधव्य को अभिशाप न मानकर शक्ति माना और राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुट गईं. तथा वर्धा में समिति की स्थापना की. हम अपनी कमियों को अपनी शक्ति बनाएं और जिस प्रकार भी संभव हो राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें. लक्ष्मीबाई केलकर के जीवन का आदर्श वाक्य था कि प्रत्येक राष्ट्र जो अपनी उन्नति चाहता है, उसे अपनी संस्कृति और इतिहास को कभी नहीं भूलना चाहिए क्योंकि भूतकालीन कृतियां व घटनाएं ही भविष्य की पथ प्रदर्शक होती हैं. हम अपनी नींव, अपनी संस्कृति पर अडिग रहकर वर्तमान और भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं तो देश और समाज का निर्माण संभव होगा.
केंद्रीय राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति जी ने वंदनीय लक्ष्मीबाई जी के संपूर्ण जीवन को अनुकरणीय बताया. आज अगर संसद में भी मातृशक्ति की गूंज है तो उसमें भी कहीं ना कहीं लक्ष्मीबाई केलकर के विचार को ही प्रधानता मिली है कि उन्होंने 1936 में जिस मातृशक्ति के विषय में सोचा था, आज संसद भवन में उस मातृशक्ति की उपस्थिति प्रत्येक भारतीय के मन में प्रेरणा का संचार करती है.
साध्वी निरंजन ज्योति ने माता मदालसा, गार्गी, मैत्री, लक्ष्मीबाई, पद्मावती, विद्यावती (भगत सिंह की माता जी) आदि कई महिलाओं का उदाहरण देकर कहा कि महिला शक्ति अगर कुछ मन में ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है.
राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका और आद्य प्रमुख संचालिका लक्ष्मीबाई को प्यार व असीम श्रद्धा से हम वंदनीय मौसी जी के उपनाम से जानते हैं. आषाढ़ मास दशमी तिथि शुक्ल पक्ष, में नागपुर में जन्मी कमल अर्थात लक्ष्मीबाई साधारण बालकों से भिन्न थी. उन्होंने महिलाओं में छिपी शक्तियों को उस समय पहचाना जब नारी सशक्तिकरण की बात से कोई परिचित भी नहीं था. 25 अक्तूबर, 1936 विजयादशमी के दिन उन्होंने महिलाओं के एक ऐसे संगठन की नींव रखी जो व्यक्ति निर्माण के साथ समाज और राष्ट्र के निर्माण में भी योगदान दे.
भारत के 2380 शहरों, कस्बों और गांवों में समिति की 3000 शाखाएं चल रही हैं. समिति के 1000 सेवा प्रकल्प चल रहे हैं.