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एकता में विविधता भारतीय संस्कृति की विशेषता है – डॉ. मनमोहन वैद्य जी

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श्रीमद्भगवद्गीता और पत्रकारिता विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

पुणे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि हमारे देश व समाज का ताना-बाना एक समान संस्कृति से बना है. मीडिया को गलत बातों को सामने लाने के साथ-साथ राष्ट्र व समाज का ताना-बाना अधिक पक्का करने वाला वार्तांकन करने की आवश्यकता को ध्यान में रखनी चाहिए और उस तरह का वार्तांकन करना चाहिए. सह सरकार्यवाह जी गीता धर्म मंडल, विश्व संवाद केंद्र और एकता मासिक फाऊंडेशन की ओर से ‘श्रीमद्भगवद्गीता और पत्रकारिता’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि एकता में विविधता भारतीय संस्कृति की विशेषता है. विभिन्न विचारधाराओं का इस संस्कृति ने स्वागत भी किया है और उनका स्वीकार भी किया है. संस्कृत अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में एक्स्लुजन शब्द ही नहीं है. इसके आधार पर यहां के समाज और राष्ट्र का निर्माण हुआ है. इसे ध्यान में रखते हुए समाज की गलत बातों को उजागर करते समय, उनका वार्तांकन करते समय भड़काऊ भाषा का प्रयोग करना मीडिया को टालना चाहिए.

गीता धर्म मंडल के अध्यक्ष डॉ. मुकुंद दातार ने कहा कि गीता धर्म राष्ट्रधर्म है. वह संस्कृति का धर्म है. गीता धर्म किसी भी उपासना पद्धति के विरोध में नहीं हैं, बल्कि हर व्यक्ति के अभ्युदय का मार्ग है. राष्ट्रधर्म के लिए भूमि प्रियता व संस्कृति प्रियता आवश्यक होती है. आज के आधुनिक युग में उत्तम नागरिक बनाने के लिए गीता के सिद्धांत उपयुक्त हैं.

सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के संज्ञापन विभाग प्रमुख डॉ. विश्राम ढोले ने कहा कि गीता और आज की पत्रकारिता में कुछ समानताएं हैं. गीता का फॉर्म संवादरूपी है और उसमें निष्पक्षता का प्रधान सूत्र दिखता है. पत्रकारिता में इसी निष्पक्षता की अपेक्षा होती है. सामने होने वाली घटना संजय ने साक्षी भाव से रखी. वही काम पत्रकार द्वारा किए जाने की अपेक्षा होती है. साथ ही यह करते समय अपनी स्पष्ट भूमिका रखना भी आवश्यक है. वार्तांकन के समय वार्तांकन और मत व्यक्त करते समय स्पष्ट भूमिका पत्रकार के गुण होने चाहिए. इन दोनों को आपस में नहीं मिलाना चाहिए. सटीक और अर्थपूर्ण शब्दों की योजना गीता की प्रमुख विशेषता है. कम शब्दों में बहुत बड़ा अर्थ गीता बताती है. पत्रकारों पर भी यही सिद्धांत लागू होता है. इस दृष्टि से भी मीडिया को गीता का अध्ययन करना चाहिए.

सकाल मीडिया ग्रुप के संपादक सम्राट फडणीस ने कहा कि प्रभावी संवाद क्या है, इसका उत्तम प्रदर्शन गीता से होता है. भाषा कैसी हो, शब्दों का सही प्रयोग कैसे करें, इसका भी मार्गदर्शन गीता से मिलता है. साथ ही किसी समाचार अथवा लेख की प्रस्तुति अधिक प्रभावी तरीके से करने के लिए उचित शब्दों व फॉर्म का प्रयोग कैसे किया जा सकता है, यह भी गीता के अध्ययन से पता चलता है.

एकता मासिक फाऊंडेशन के अध्यक्ष रवींद्र घाटपांडे ने प्रस्तावना रखी. विश्व संवाद केंद्र के पूर्व अध्यक्ष मनोहर कुलकर्णी ने आभार प्रकट किया. डॉ. नयना कासखेडीकर ने सूत्र संचालन किया.

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