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प्रभु श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा भारत के लिए राष्ट्रीयता का पुनर्जागरण – डॉ. कृष्णगोपाल जी

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विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान द्वारा संचालित शिक्षा तथा विकास अध्ययन संस्थान का भूमि पूजन

नोएडा. विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान के संसाधन एवं शोध केंद्र ‘शिक्षा तथा विकास अध्ययन संस्थान’ का भूमि पूजन सेक्टर 145 नोएडा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने किया. संस्थान के कोषाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत शर्मा जी ने सपत्नीक भूमि पूजन में सहभागिता की.

सह सरकार्यवाह जी ने उच्च शिक्षा में ‘स्व’ आधारित व्यवस्था को तैयार करने, शोध आधारित सत्य को सामने लाने एवं विदेशी बुद्धिजीवियों द्वारा भारत के विरुद्ध चलाए जा रहे दुष्प्रचार का तर्क व तथ्यों के साथ प्रत्युत्तर देने के लिए गहन शोध हेतु राष्ट्रीय सोच वाले बुद्धिजीवियों को आगे आने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा भारत के लिए राष्ट्रीयता का पुनर्जागरण है. उन्होंने कहा कि आज के युवा को स्व का बोध नहीं है, उसको पता नहीं है कि हम क्या थे, हमारा इतिहास कितना गौरवमयी व वैज्ञानिक था. यहां के युवाओं के मन में अपने ही देश को लेकर हीन भावना पैदा की गई, और यह एक सुनियोजित ढंग से किया गया. जैसे संस्कृत के बारे में प्रचारित किया गया कि संस्कृत एक मृत भाषा है, उसका कोई भविष्य नहीं है.

उन्होंने कहा कि केवल लंबे चौड़े रोड और कंपनी बनने से देश का विकास नहीं होगा, भारत का विकास शिक्षा से होगा. आने वाली पीढ़ी को सभी विषयों की शिक्षा के साथ संस्कार भी देने होंगे. हम सबको पढ़ाया गया है कि सर्जरी विदेश की खोज है और आज विदेशी शिक्षा पद्धति से भारत में शिक्षा दी जाती है. पर यह सभी पद्धतियां  भारत की हैं. हमें शल्य चिकित्सा के जनक सुश्रुत के बारे में नहीं बताया गया, उन्हीं ने विश्व की पहली सर्जरी की थी. हमारे देश की पांडुलिपियों में बहुत कुछ छिपा है, पर कोई पढ़ना नहीं चाहता है. विदेशी इस पर शोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान का भूमि पूजन केवल एक सामान्य भूमि पूजन नहीं है, यह भारत की उच्च शिक्षा में स्व के बोध की आधारशिला रखी जा रही है जो भविष्य में उच्च शिक्षा की दिशा तय करेगी.

संस्थान के मंत्री प्रो. नरेंद्र कुमार तनेजा ने कहा कि भारत की विकास गाथा के विरुद्ध संगठनात्मक प्रचार किया जा रहा है. विद्या भारती 1952 से शिक्षा जगत में दिशा देता रहा है और इसी सफलता को देखते हुए उच्च शिक्षा जगत में अपना विस्तार करने के उद्देश्य से आज यह भूमि पूजन हुआ है. शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो भौतिक उन्नति के साथ-साथ धर्म आधरित भी हो और मोक्ष के लिए व्यक्ति को तैयार करे. भारत की सारी ज्ञान व्यवस्था धर्मशास्त्र, संस्कृत, पूजा पद्धति और दर्शन की बात भी करती है. यही भारतीय ज्ञान व्यवस्था का रूप है. संस्थान के अध्यक्ष प्रो. कैलाशचंद्र शर्मा जी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने एवं शोध हेतु समाज पोषित एक स्वतंत्र शोध संस्थान की आवश्यकता जताई.

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