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शब्द ही भारत की आत्मा और संस्कृति को परिभाषित करता है – आरिफ मोहम्मद खान

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भारत के ज्ञान का मूल सार विश्व कल्याण है – सुनील आम्बेकर

वाराणसी. विश्व संवाद केंद्र, काशी की ओर से रूद्राक्ष इण्टरनेशनल कन्वेन्शन सेंटर वाराणसी में आयोजित तीन दिवसीय काशी शब्दोत्सव 2023 के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि हमारे यहां गया है कि इस दुनिया का हर काम शब्दों के जरिए ही चलता है. इससे बड़ी और क्या बात होगी.

शब्द अक्षर से बनता है, और अक्षर का अर्थ अगर हम समझें तो जो नष्ट न हो सके, जो कम न हो सके, जो बढ़ न सके वो अक्षर. तो जो नष्ट न हो सके उसकी ताकत महसूस कर सकते हैं, और जो नष्ट न हो सके ऐसी एक, दो या तीन इकाईयों से मिलकर बने शब्द की ताकत पर गौर कीजिए. समारोह का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन से हुआ.

उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति आदिकाल से ज्ञान पर आधारित संस्कृति है. और ज्ञान की जड़ में तो शब्द व अक्षर ही होते हैं. गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने एक स्थान पर लिखा है – India cannot attain true independence, unless it is recognized that her foundation is in mind. With which its diverse powers and confidence in those powers goes on all the time creating Swaraj for itself.

शारीरिक शक्ति, भौतिक शक्ति से जो स्मृतियां बनाई जाती हैं, उनकी एक एक्सपायरी डेट होती है. मानसिक शक्ति, क्षमता की अभिव्यक्ति पर कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती. कोई अक्षर ऐसा नहीं है जिसके अंदर मंत्र की शक्ति न हो, तो शब्द की शक्ति की हम केवल कल्पना कर सकते हैं.

स्वामी विवेकानन्द ने भी कहा है कि भारत की संस्कृति व आत्मा शब्द से ही परिभाषित होती है. जीवन का परम उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति है व एकात्मकता भारत का आदर्श है. शब्द की शक्ति का उत्सव मनाने के लिए शिव की नगरी काशी ही सर्वाधिक उपयुक्त स्थान है. उन्होंने नई तकनीक के माध्यम से शब्दों को सहेजने पर बल देते हुए कहा कि कम्प्यूटर इसमें कारगर भूमिका निमा रहा है.

उद्घाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर ने उपस्थित अतिथियों व अन्य विशिष्टजनों का स्वागत करते हुए काशी शब्दोत्सव के आयोजन के लिए सभी सहयोगियों को शुभकामना दी. उन्होंने कहा कि आने वाला समय भारत का है. भारत किस ओर जा रहा है, वर्तमान में इस बात पर मंथन होना आवश्यक है. ज्ञान भ्रम को दूर करता है. काशी का शब्दोत्सव इसमें मार्गदर्शक की भूमिका निभाएगा. भारत की सभ्यता संस्कृति को देखने से मालूम होता है कि यहां की समानता को समझना, एकता के निर्माण की प्रक्रिया पर भी चर्चा आवश्यक है. भारत के ज्ञान का मूल सार विश्व कल्याण है. भारत के विकास के लिए हर संभव प्रयास करना होगा. भारतीय ज्ञान को प्रकट होने का यही उचित समय है. काशी शब्दोत्सव में इन सब विषयों पर मंथन होगा.

उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने काशी के महत्व पर आधारित कुछ पंक्तियां गुनगुनाकर शब्दों के महत्व को दर्शाया. उन्होंने बनारसी भाषाशैली, मौजमस्ती के साथ ही काशी के महत्व पर विस्तार से अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि काशी में शब्दोत्सव का आयोजन मील का पत्थर साबित होगा. कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत डॉ. हरेन्द्र राय व उद्घाटन सत्र का संचालन शैलेश कुमार मिश्र ने किया. इस अवसर पर देश के विभिन्न प्रांतों से आये लगभग 1500 प्रतिनिधियों एवं विद्वानों की उपस्थिति रही.

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