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भारत को भारत की आंखों से देखने का समय

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नई दिल्ली. भारत प्रकाशन द्वारा दिल्ली में आयोजित पर्यावरण संवाद में स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने भारत की विधियों को अपनाने और बढ़ावा देने का आग्रह किया.

स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने कहा कि आज जो विषय सबसे अधिक आवश्यक है, उस पर चिंतन और मंथन हो रहा है. गडकरी जी पानी की बात कर रहे थे कि पानी से गाड़ी चलेगी. पानी ही अगला ईंधन है. पानी के लिए शेयर मार्केट होगी. अभी खरीदेंगे और बीस साल बाद बेचेंगे. इसलिए हमारे यहां बहुत पहले ही ऋगवेद में इसकी चर्चा है. तब से लेकर अब तक नवीनतम कृति स्वामी तुलसीदास की है. हम अपने बच्चों को वैज्ञानिक तरीके से पानी के बारे में बताएं. मुझे लगता है कि आने वाले दस साल में यही पानी की बोतल, तीन सौ रुपये तक की होगी. दस साल में भारत में पीने का पानी जितना चाहिए, उससे आधा रह जाएगा. बीस साल में दुनिया में जितना पानी है, उसका आधा रह जाएगा. पानी है तो गंगा है, तो कुंभ है, प्रयाग है. पानी है तो सब कुछ है. वेदों से लेकर आज तक यही कहा गया है कि पंचतत्व से मिलकर ही यह शरीर बना है. हमारे यहां भगवान में पंचतत्व हैं.

1- भूमि, 2- गगन, 3- वायु, 4- अग्नि, 5- नीर

इन पांचों में जो समावेश है, वही भगवान है.

उन्होंने कहा कि समय जल को बचाने का है. मैंने धर्मगुरुओं को जोड़ा कि पानी के महत्व को जानें. हम सभी को पर्यावरण के बारे में सोचना चाहिए. बात भारत की हो रही है तो भारत को भारत की आंखों से देखने का समय आ गया है. मैं तो कहूंगा कि जो खोया उस का गम नहीं, जो बचा है वह भी कम नहीं. आज पाञ्चजन्य को नई दृष्टि से बजने की जरूरत है. आज फिर पाञ्चजन्य को बजना है. पाञ्चजन्य कुरुक्षेत्र में बजा था, वहां महाभारत हुआ. आज फिर पाञ्चजन्य बजेगा. अब महान भारत बनाने की बारी है. महाभारत से महानभारत तक की यात्रा. कुरुक्षेत्र में बजा था, लेकिन अब यह हर घर बजेगा.

उन्होंने कहा कि अब सशक्त नेतृत्व है. अब संस्कारी सरकार है. प्रधानमंत्री पूरे देश को दृष्टि दे रहे हैं. विदेश में भारत के संस्कार छाप छोड़ रहे हैं. प्रधानमंत्री ने जब पहली बार मैडिसन स्कवायर में स्पीच दी. वह दृष्य सभी ने देखा. मैंने पहली बार किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष के प्रति इतना सम्मान देखा. स्वामी जी ने कहा कि आज फिर पाञ्चजन्य का समय आ गया है. पाञ्चजन्य संस्कारों के संरक्षण का. संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण का. सरकार समाज और संस्थाएं सब मिलकर काम करें. हर आश्रम हर संस्था को इनोवेटिव होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि प्लास्टिक का बहिष्कार करें. भारत की विधियों का प्रयोग करें. मिलकर संकल्प करें. अपने-अपने जन्मदिन पर पेड़ लगाएं. हमारा निवेदन है कि पाञ्चजन्य का एक कार्यक्रम गंगातट पर करें.

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