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रंगारंग समारोह के बीच 5वें चित्र भारती फिल्मोत्सव की ट्रॉफी का अनावरण

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भारतीय दर्शन और सामाजिक सरोकार एवं चेतना पैदा करने वाली फिल्में बनें, यही भारतीय चित्र साधना का उद्देश्य – नरेंद्र ठाकुर

चंडीगढ़. फिल्म अभिनेता रणदीप हुड्डा ने कहा कि फरवरी में होने जा रहा पांचवां चित्र भारती फिल्मोत्सव हरियाणा सहित देश के अन्य राज्यों की प्रतिभाओं को सामने लाने का काम करेगा. फिल्मोत्सव से इन कलाकारों को आगे बढ़ने के अवसर प्राप्त होंगे. रणदीप हुड्डा बुधवार को टैगोर थियेटर चंडीगढ़ में आयोजित 5वें चित्र भारती फिल्मोत्सव की ट्रॉफी अनावरण एवं स्मारिका विमोचन के अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे. उन्होंने कहा कि भारतीय चित्र साधना फिल्मों में भारत का दर्शन दिखाने के लिए आग्रह कर रही है. यह एक बहुत अच्छा प्रयास है. उन्हें पूरा विश्वास है कि भारतीय चित्र साधना से जुड़ा हर व्यक्ति इस कार्य में पूरी क्षमता से जुटेगा. उन्होंने पंचकूला में 23 से 25 फरवरी को होने जा रहे तीन दिवसीय फिल्मोत्सव पर चर्चा के साथ अपनी आने वाली बहुचर्चित फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर का भी जिक्र किया.

पांचवें चित्र भारती फिल्मोत्सव के ट्रॉफी अनावरण एवं स्मारिका विमोचन समारोह का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन और वंदे मातरम से हुआ. कार्यक्रम में हरियाणा के लोक कलाकार गजेंद्र फौगाट ने सांस्कृतिक प्रस्तुति दी. गजेंद्र फौगाट की प्रस्तुति पर दर्शक दीर्घा में बैठे लोग भी थिरकने को मजबूर हो गए. स्मारिका विमोचन और आयोजन समिति के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश कुमार ने अतिथियों का धन्यवाद किया.

समारोह में विशेष अतिथि के रूप में हरियाणा विधानसभा के अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता, अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर, चंडीगढ़ के मेयर अनूप गुप्ता, पंचकूला के मेयर कुलभूषण गोयल, भारतीय चित्र साधना के अध्यक्ष प्रो. बृजकिशोर कुठियाला, आयोजन समिति के चेयरमैन योगेंद्र चौधरी, कार्यकारी अध्यक्ष राजेश कुमार व अन्य सम्मिलित हुए.

अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर ने कहा कि सिनेमा में भारतीय दर्शन, सामाजिक सरोकार, चेतना एवं प्रेरणा के साथ धर्म संस्कृति और नैतिक मूल्यों की झलक होनी चाहिए. भारतीय चित्र साधना इसी उद्देश्य को लेकर इस तरह के आयोजन कर रही है. उन्होंने कहा कि 13 अप्रैल को भारतीय सिनेमा 111 वर्ष का होगा. इन वर्षों में भारतीय सिनेमा ने अनेक करवट ली. भारत का सिनेमा सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र नामक पहली फिल्म से शुरु हुआ था, वह आज आधुनिकता के नाम पर फूहड़ता परोसने और नैतिक मूल्यों के ह्रास तक पहुंचा है. बीच-बीच में कई प्रेरक और अच्छी फिल्में बनती रही हैं और उन्हें खूब पसंद भी किया गया, मगर संख्या कम है. पिछले दशकों में भारतीय सिनेमा के माध्यम से भारतीय दर्शन पर प्रहार के लिए एक नैरेटिव भी खड़ा किया गया. इसी सोच के साथ पाश्चात्य संस्कृति और बाजारवाद को बढ़ावा दिया गया. एक खास वर्ग को आकर्षित करने के लिए निम्न स्तर के कंटेंट वाली फिल्में और गीत संगीत परोसा गया. इसका सीधा दुष्प्रभाव पूरे समाज विशेषकर युवा शक्ति पर पड़ा है. उन्होंने बताया, भारतीय चित्र साधना का लक्ष्य है कि भारत में एक उच्च स्तरीय सिनेमा का दर्शन हो, जिसमें महिला सशक्तिकरण, रोजगार सृजन, समरसता, पर्यावरण के प्रति जागरूकता, भविष्य का भारत, जनजातीय समाज, ग्राम विकास, नवाचार, नैतिक शिक्षा की झलक हो. अगर भारत में मनोरंजन के लिए ही सिनेमा होता तो फिल्म उद्योग के पितामह कहे जाने वाले दादा साहब फालके इसकी नींव राजा हरिश्चंद्र जैसी फिल्म से ना रखते. उन्होंने भारतीय चित्र साधना की टीम को बधाई देते हुए कहा कि उन्हें समाज को साथ लेकर इस विषय को आगे बढ़ाने का प्रयास निरंतर जारी रखना चाहिए.

भारतीय चित्र साधना के अध्यक्ष प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने 23 से 25 फरवरी को होने वाले पांचवें फिल्म फेस्टिवल और इससे पूर्व भारत के अलग अलग राज्यों में हुए फिल्म समारोह की जानकारी दी. उन्होंने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि चित्र साधना का उद्देश्य भारत के नवोत्थान के लिए युवा वर्ग को फ़िल्मों के माध्यम से योगदान करने को प्रेरित करना है. फिल्में न केवल समाज का दर्पण होती हैं, बल्कि फ़िल्मों के माध्यम से सपने बुनने व साकार करने की प्रेरणा भी दी जा सकती है. भारतीय चित्र साधना के तत्वाधान में सभी प्रांतों में फ़िल्म निर्माण की कार्यशालाएं की जाती हैं, जहां युवाओं को अभिनय, कैमरा, प्रकाश, साउंड, पटकथा लेखन आदि के अतिरिक्त फ़िल्मों के वितरण व प्रदर्शन प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जाता है. साधना के सभी कार्यों में मुम्बई के अतिरिक्त अन्य फ़िल्म निर्माण केंद्रों से भी कलाकार व फ़िल्मकार सक्रिय हैं. उन्होंने आशा व्यक्त की कि भारतीय चित्र साधना फ़िल्मोत्सव के माध्यम से फ़िल्म निर्माताओं की ऐसी पीढ़ी तैयार होगी, जिसे पूरे विश्व में कुशलता व विशेषज्ञता होने का सम्मान मिलेगा. प्रो. कुठियाला ने घोषणा की कि वह दिन दूर नहीं है, जब भारत भूमि पर कैन से अधिक सम्मानित फ़िल्मोत्सव होगा और ऑस्कर के मुक़ाबले के ही सम्मान भारत के महापुरुषों के नाम से विश्व में विख्यात होंगे. यह भी प्रयास किए जा रहे हैं कि अधिक से अधिक विश्वविद्यालयों व कॉलेजों ने वीडियो व फ़िल्म निर्माण के पाठ्यक्रम चलाए जाएं और विद्यार्थियों के पास अपनी पढ़ाई के साथ फ़िल्म निर्माण का शिल्प व कला सीखने का भी अवसर हो.

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