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कारसेवा के वो दिन….

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रामभक्त मानों अयोध्या में अट जाने को आतुर थे. असंख्य-असंख्य जन गली-मोहल्ले, चौक-चौराहे और मठ-मन्दिरों में भरते ही जाते थे. शासन-प्रशासन उन्हें रोक रहा था, पर अयोध्या मानो वैकुंठ भाव से सबका स्वागत कर रही थी. भोजन-आवास जैसे प्रबन्ध कैसे और कितने बन गए थे, इसका आज ब्यौरा देना कठिन है. इसी अयोध्या का प्रमुखतम आश्रम, जो अपनी सेवा परायणता के लिए विख्यात है, वहाँ भण्डारे की बड़ी व्यवस्था का प्रचार होने के कारण कारसेवकों के जत्थे उधर जुटने लगे. ज्यों-ज्यों आगंतुकों को भोजन प्रसाद मिला, ये भीड़ अनियंत्रित सी होती गई. उल्लसित और ऊर्जा से भरे लोग चप्पल-जूते उतारने का भी ध्यान न रख पाते. आश्रम के जिन हिस्सों में जूते-चप्पल नहीं जाते, वहाँ प्रवेश होते देख व्यवस्थापकों की त्यौरियां चढ़ गईं. रोकना चाहा पर समुद्र की लहर रोके कब रुकती.

वे आश्रम के महन्त के पास गए – “सरकार! सब जूता-चप्पल पहनकर घुस रहे हैं, अब भण्डार बन्द करा दिया जाय”. तो महन्त का उत्तर था कि “अरे! तुम जानते हो ये लोग कौन हैं? विभिन्न नाम-रूप, जाति-गोत्र और वेष-भाषा से युक्त ये हमारे प्रभु की वानर सेना है. ये हमारे रामलला के घर की चिन्ता में अपना घर परिवार छोड़कर आए हैं. इनसे भण्डार अपवित्र नहीं होता, इनका तो चरणामृत लिया जाना चाहिए. जाओ सबको प्रेम से पवाओ”. भण्डारे का जोश और बढ़ गया. लेकिन ये सब कब तक चलेगा, ये दिखाई नहीं देता था. कोठारी को चिन्ता हुई, उन्होंने कुछ दिन बाद फिर से जाकर निवेदन किया – महाराज श्री! भीड़ अपार है, लोग दिन-रात आते रहते हैं. रसद की एक सीमा है, ऐसे कब तक चलेगा? भण्डारे का समय निर्धारित कर दिया जाए. तो फिर जवाब आया – “आज भर का रसद है न! उससे करो, कल कहाँ से आएगा, ये मत सोचो. ये सब हम-तुम नहीं कर रहे, ये श्री हनुमान जी महाराज की लीला है. जाओ, देखो कोई भूखा न लौटने पाए”.

ये कहानी नहीं है, ये एक दृश्य है. उस महापुरुष के स्वभाव का, जिसके सम्मुख देश के प्रधानमंत्री जी (चित्र में) हाथ जोड़ते तो हैं तो वो रामानंदीय महात्मा भी हाथ जोड़कर प्रत्यभिवादन करते हैं, क्योंकि आप हमारे प्रभु का कार्य करने आए हैं. नाम बताने की आवश्यकता तो नहीं पर लोग उस नाम को दोहरा सकें, इसलिए यहाँ अपेक्षित है. ये हैं, श्री मणिरामछावनी के पूज्य महन्त, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष और रामानंदीय साधुशाही के उदाहरण परमपूज्य श्री नृत्यगोपाल दास जी महाराज.

ये वो छावनी है, जहाँ पण्डित नेहरू आए तो तत्कालीन महन्त जी भगवत्कैंकर्य में ऐसे तल्लीन थे कि दर्शन को प्रधानमंत्री की ओर नज़र भी न फेर सके. आज जब श्रीराम जन्मभूमि निर्माण में अपनी-अपनी भूमिका के प्रमाणपत्र दिखाए जा रहे हैं, अपने ही मुँह अपनी करनी का बहु भाँति वर्णन किया जा रहा है, तब अयोध्या का, रामानन्द सम्प्रदाय का और रामानन्दीय निष्ठा का प्रमाण बना ये महापुरुष सब कुछ देख-सुन रहा है. अवस्था और स्वास्थ्य की अनेक प्रतिकूलताओं के बाद भी जिनकी चेतना श्रीरामलला से ऐसी जुड़ी है कि सब कुछ जीतकर वे इस दृश्य के साक्षी बन रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज बारम्बार साधुवाद के पात्र हैं कि आप स्वयं श्री महाराज जी के स्वास्थ्य की चिन्ता करते हैं.

और..हमारी अयोध्या के गौरव छावनी पीठाधीश्वर श्री महाराज जी इस अवस्था में भी साधुओं, भक्तों और धर्मनिष्ठ समाज के लिए सतत प्रस्तुत हैं.

यह लेख केवल किसी की प्रशस्ति के लिए नहीं है, यह इसलिए है कि यही अयोध्या है. जीते जी एक मिथक बन चुके श्रीमहाराज जी अपना पक्ष बयानों से नहीं रखते, कभी नहीं रखा. उनके सारे प्रमाण उनके आचरण, उनकी सर्व हितैषिणी जीवन दृष्टि में निहित हैं. आज जब “कोन्योस्ति सदृशो मया” का अशिष्ट उद्घोष छा रहा है. तब, छावनी पीठाधीश्वर श्री महाराज जी प्रणम्य हैं. आप अपने मौन से मानो एक पाठ पढ़ा रहे हैं कि “जिसमें जितना जर्फ है वो उतना ही खामोश है”.

 

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