चंडीगढ़. संविधान निर्माता बाबा साहब डा. भीम राव अम्बेडकर के दर्शन का चिंतन समग्रता में होना चाहिये. राष्ट्र निर्माण में डाक्टर अम्बेडकर के व्यापक योगदान को प्रकाश में लाने के लिये यह अनिवार्य है. यह निष्कर्ष था, 22 जुलाई को यहां रीजनल इंस्टीच्यूट ऑफ को-आपरेटिव मैनेजमैट में डा. अम्बेडकर का राष्ट्रीय दृष्टिकोण विषय पर हुई विचार गोष्ठी का.
‘हिमाचल रिसर्च इंस्टीच्यूट’ द्वारा आयोजित इस गोष्ठी के मुख्य वक्ता के रूप में विषय पर अपना दृष्टिकोण रखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डाक्टर कृष्ण गोपाल ने कहा कि डाक्टर भीमराव अम्बेडकर को भारत का सामान्य जन सिर्फ संविधान निर्माता के रूप में जानता है तथा उनकी विचारधारा को लेकर भी कई भ्रांतियां उत्पन्न की गई है, जबकि भारत राष्ट्र के निर्माण में उनकी बहुआयामी प्रतिभा और उनकी दूर दृष्टि के अहम योगदान का पक्ष प्रकाश में नहीं आ सका. उन्होंने कहा कि यह विडम्बना है कि अर्थ शास्त्र पर बाबा साहब के मौलिक और प्रभावी अध्ययन को कभी राष्ट्र के समक्ष नहीं रखा गया. इसी प्रकार, देश के प्रथम श्रम मंत्री के रूप में श्रमिक जमात के हितों की सुरक्षा के लिये किए गये उनके सुधार और बनाए गये कानून के बावजूद श्रम क्षेत्र में उनको प्रवर्तक रूप को स्वीकारोक्ति देने का कभी प्रयास नहीं किया गया.
सह सर कार्यवाह ने कहा कि डाक्टर अम्बेडकर की दृष्टि में राष्ट्र ही प्रमुख था. सामाजिक सामजंस्य और राष्ट्रीय एकता के वह पक्षधर थे न कि जातिवाद के. उन्होंने कहा कि डाक्टर अम्बेडकर के समग्र दर्शन में राष्ट्र ही सर्वोपरि रहा और बौद्ध दर्शन को धारण करना, पाकिस्तान के बनने के विषय में मुस्लिम जनसंख्या के सम्पूर्ण स्थानांतरण की नितांत आवश्यकता को बताना, राष्ट्र एकता के लिये तमाम भाषाओं के सम्मान के साथ-साथ एक राष्ट्रभाषा की वकालत, आर्य सभ्यता के विदेशी होने की ब्रिटिश शासन की साजिश को भांप लेना, राजनीतिक सुधारों के आधार के रूप में सामाजिक सुधारों की अनिवार्यता बताना, स्वतंत्रता-समानता और बंधुत्व तीनों बातें देश के समाज के प्रत्येक वर्ग में होने से ही आजादी का सही अर्थों में आनंद आना इत्यादि तमाम बातें उनके राष्ट्र दृष्टिकोण में ऐसी है जो डाक्टर अम्बेडकर को सर्वोच्च राष्ट्रवादियों, राष्ट्रभक्तों और भारतीय समाज सुधारकों की सूची में अग्रणी रखती है.
विषय प्रवर्तन करते हुए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के उपाध्यक्ष डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि भारत में ईसाई मिशनियों की धर्मांतरण की साजिश को सर्वप्रथम डा. अम्बेडकर ने ही बेनकाब किया था. उन्होंने भारतीय समाज के बीच की खाइयों को पाटने की कोशिश की तथा देश में जाति-भेद के कैंसर को समाप्त करने का प्रयास करते हुए सामाजिक समरसता और समानता की बात मजबूती के साथ की. डा. अग्निहोत्री ने कहा कि बाबा साहब ने भारतीय समाज को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पंजाब टेक्नीकल यूनिवर्सिटी के कुलपति डा. रजनीश अरोड़ा ने कहा कि राजनीतिक हितों के लिये अब तक डा. अम्बेडकर को सिर्फ आरक्षण से जोड़ का प्रस्तुत किया गया है, जबकि डाक्टर अम्बेडकर ने यह व्यवस्था सीमित समय के लिये की थी. उन्होंने कहा कि वर्तमान में तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण का विषय, तकनीकी कालेजों की बहुतायत से स्वयंमेव ही प्राय: समाप्त हो गया है. अब बात सिर्फ नौकरियों और महंगी उच्च शिक्षा पर टिक गई है. इसलिये यदि नौकरियां और शिक्षा आम आदमी की पहुंच में हो जाये तो इस विषय के राजनीतिक इस्तेमाल की आवश्यकता ही नहीं रह जायेगी. डा. रजनीश ने कहा अस्पृश्यता हिन्दू संस्कृति का कभी हिस्सा नहीं रही.
कपलपति ने कहा कि देश में केन्द्र और राज्य सरकारों ने आरक्षित वर्ग के छात्रों के लिये मुफ्त उच्च शिक्षा की राशि का भुगतान सात-सात साल तक कालेजों को नहीं किया. ऐसे में कालेज प्रबंधकों को अदालत की शरण में जाना पड़ा. उन्होंने कहा कि इस दिशा में सरकारों को ध्यान देना होना, लेकिन इसके बावजूद समस्या का हल सत्ता या सरकार के स्तर पर नहीं, समाज के स्तर पर ही होगा.
इस गोष्ठी में संघ के प्रांत प्रचारक किशोर कांत, प्रांत बौद्धिक प्रमुख विजय सिंह नड्डा, प्रचारक जसबीर सिंह, विद्यार्थी परिषद के प्रांत संगठन मंत्री सूरज भारद्वाज, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष कमल शर्मा, विवेकानंद केन्द्र कन्याकुमारी की जीवनव्रती एवं हरियाणा-पंजाब प्रभारी अलका गौरी, सीए पंकज जिंदल, एसोसिएट प्रोफेसर जतिन्द्र गर्ग, मेट्रो एन्काउन्टर के सम्पादक एवं विवेकानंद केन्द्र कन्याकुमारी (पंजाब) के प्रांत सदस्य राकेश शान्तिदूत समेत अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे.