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वनवासी देश की सम्पत्ति हैं – हर्ष जी चौहान

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गुजरात (विसंकें). अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम, गुजरात द्वारा जनजाति समाज पर तैयार किये गए  “जनजाति नीति दृष्टी पत्र” का रविवार को कर्णावती महानगर में गुजरात राज्य के आदिजाति विकास मंत्री मंगुभाई पटेल ने विमोचन किया.

112कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वनवासी कल्याण आश्रम की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य हर्ष जी चौहान ने कहा कि कल्याण आश्रम द्वारा जनजाति के विकास का कार्य करते समय यह ध्यान में आया कि जनजाति की वास्तविकता शासन को पूर्णरूप से मालूम नहीं है. जनजाति समाज की वास्तविकताओं को शासन व समाज तक पहुंचाने के उद्देश्य से जनजाति नीति दृष्टी पत्र (Vision Document for Janjati of India) में अनेक कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम से चलने वाले कार्य के अनुभव को लिपिबद्ध किया गया है. देश की राजधानी दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम के साथ दृष्टिपत्र का विमोचन लोकार्पण हो चुका है. देश के सभी राज्यों के मुख्यालयों पर दृष्टिपत्र के विमोचन का आयोजन होना है. इस श्रृंखला में आज गुजरात में इसका विमोचन किया गया. यह दस्तावेज दो भागों में है, पहला शासन/प्रशासन तथा दूसरा जनजाति के विकास से संबंधित है.

अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम वर्ष 1952 से निरंतर जनजाति समाज के सर्वांगीण विकास हेतु कार्यरत है. संपूर्ण देश में 20,000 से अधिक सेवा कार्य के माध्यम से जनजाति परंपरा और पहचान को अक्षुण्ण रखने हेतु प्रयत्नशील है. इस प्रकार का दृष्टिपत्र सामाजिक संस्था के नाते अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने भारत में सर्वप्रथम बार प्रस्तुत किया है. इससे पहले इस प्रकार का प्रयास किसी के द्वारा नहीं किया गया.

विश्व के सभी भागों में वनवासियों पर अत्याचार हुए, लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि हमारे देश में कभी भी जनजाति समाज को अलग नहीं माना गया. उसे समाज का ही एक अंग माना गया. संविधान निर्माताओं ने भी जनजाति के हितों को ध्यान में रखकर बहुत अच्छे प्रावधान किये है. लेकिन इसके बाद भी जिस गति से जनजाति के समाज के बीच कार्य होना चाहिए, वह नहीं हो सका. नीतियां जरुर बनीं, लेकिन क्रियान्वयन संतोषजनक रूप से नहीं हुआ. वन और जनजाति का अटूट साथ है, वनों की पहचान ही टाइगर (Tiger) और ट्राइबल (Tribal) है. चाणक्य ने भी सीमांचल के वनवासियों को देश का प्रहरी बताया है. हमारे राजाओं ने भी कभी जनजातियों के क्षेत्र में दखल नहीं दिया. लेकिन Forest Act आने के बाद इस समाज को अनावश्यक रूप से परेशान किया गया, यहां तक कि इनको आपराधिक समाज घोषित करने का प्रयास भी अंग्रेजों द्वारा हुआ. इस संदर्भ मे देखा जाए तो नया वनाधिकार कानून काफी अच्छा है. हमने जनजाति नीति दृष्टी पत्र में वनवासी समाज के बीच कार्य करते करते ध्यान में आई, उनकी समस्याओं और उनके उचित समाधान के विषय में जानकारी दी है. यह नितिपत्र शासन/प्रशासन और समाज के लिए उपयोगी रहेगा, ऐसी हमारी आशा है. वनवासी देश की सम्पत्ति हैं, सिर्फ सही दृष्टी से देखने के प्रयास की आवश्यकता है.

कार्यक्रम के प्रारंभ में वनवासी कल्याण आश्रम के क्षेत्र संगठन मंत्री भगवान सहायजी द्वारा प्रस्तावना रखी गई. गुजरात प्रांत के संघचालक मुकेशभाई मलकान, वनवासी कल्याण आश्रम गुजरात प्रांत अध्यक्ष डॉ. हर्षदभाई भट्ट सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे.

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