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परिवार रूपी रथ का पुरुष रथी तो नारी ‘सा’रथी है – सीता अन्नदानम

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नई दिल्ली. राष्ट्र सेविका समिति की आद्य संचालिका वंदनीय लक्ष्मीबाई केलकर के 118वें जन्म दिवस उत्सव पर मेधाविनी सिंधु सृजन, दिल्ली प्रांत ने हंसराज कॉलेज में कार्यक्रम आयोजित किया. कार्यक्रम में मुख्य वक्ता सीता अन्नदानम (अखिल भारतीय प्रमुख कार्यवाहिका, राष्ट्र सेविका समिति), अध्यक्षा दीदी मां साध्वी ऋतंभरा (अधिष्ठात्री वात्सल्य ग्राम), मुख्य अतिथि डॉ. कृष्ण गोपाल जी (सह सरकार्यवाह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) रहे.

मेधाविनी सिंधु सृजन की संयोजिका प्रो. निशा राणा ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी. विगत 10 वर्षों से मेधाविनी सिंधु सृजन प्रबुद्ध वर्ग की बहनों के साथ लगातार कार्य में गतिमान है. कार्यक्रम में ‘हिन्दू प्रकाश में महिला विमर्श” नामक पुस्तक का विमोचन किया गया.

मुख्य वक्ता सीता अन्नदानम ने कहा कि समर्पण का भाव राष्ट्रहित के लिए होगा तो राष्ट्र उन्नति करेगा. परिवार रूपी रथ का पुरुष रथी है तो स्त्री सारथी है. जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण महाभारत में अर्जुन के सारथी थे और उनके दिशा-निर्देशों पर ही अर्जुन ने महाभारत का युद्ध लड़ा था. उसी प्रकार स्त्री परिवार की सारथी है, उसका सम्मान होना चाहिए. राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं में अंतर्निहित शक्तियों को जागृत करने का कार्य कर रही है. देश के 650 जिलों तक नेटवर्किंग का कार्य हो रहा है. स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देकर कहा कि भारत की महिलाओं का उद्धार करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह स्वयंसिद्धा हैं, वे अपने जीवन के लक्ष्य को जानती हैं. वह अपना उद्धार स्वयं कर सकती हैं. आज महिलाओं में अपनी शक्तियों का विस्मरण हो गया है, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि महिलाएं अपनी संस्कृति, अपनी शक्तियों का फिर से स्मरण करें और समाज को एक नई दिशा दें.

उन्होंने कहा कि लक्ष्मीबाई केलकर जी ने अपने वैधव्य को अभिशाप न मानकर शक्ति माना और राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुट गईं तथा वर्धा में समिति की स्थापना की. हम अपनी कमियों को अपनी शक्ति बनाएं और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें. उन्होंने कहा कि समाज का नेतृत्व करने वाला मौसी जी जैसा अनुकरणीय होना चाहिए. उनके जीवन और वाणी में ‘मैं’ का स्थान नहीं था, सब कुछ राष्ट्र को समर्पित था. मातृशक्ति संगठन द्वारा ही राष्ट्र और विश्व में परिवर्तन संभव है. मौसी जी ने मातृशक्ति को परिवार, समाज और राष्ट्र को जोड़ने वाली कड़ी कहा है. संस्कृति का रक्षण, भाषा, आचरण और व्यवहार द्वारा ही संभव है. प्रत्येक राष्ट्र जो अपनी उन्नति चाहता है, उसे अपनी संस्कृति और इतिहास को कभी नहीं भूलना चाहिए.

दीदी मां साध्वी ऋतंभरा जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की. उन्होंने कहा कि स्त्री स्वयं सिद्धा है. अपने कर्तव्यों का बोध होने पर वह विश्व को दिशा दिखा सकती है. शिक्षा का अर्थ नशे में डूबना नहीं है. ना ही लिव इन रिलेशनशिप से है. भारत की नारी गंगा के गंगत्व को धारण करने वाली है. मौसी जी ने  एक ऐसे संगठन की स्थापना की जो कार्यकर्ताओं को तराशने का काम करता है. उन्होंने एक ऐसा वट वृक्ष लगाया, जिसने अन्य वट वृक्षों को जन्म दिया. इस संकल्प दिवस पर महिलाओं को संगठित होकर राष्ट्र को संगठित करने का संकल्प लेने का आह्वान किया.

मुख्य अतिथि डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि वंदनीय लक्ष्मीबाई जी का संपूर्ण जीवन अनुकरणीय रहा है. जो परिवर्तन है, वह अपनी सुरक्षा के लिए है, वह हमारा मूल‌ नहीं है. भारत की महिलाएं वैदिक काल से ही जागरूक व शिक्षित थीं. वैदिक काल में 26 महिलाओं ने वेदों की ऋचाएं लिखी हैं. अपाला, मैत्रयी, गार्गी, सूर्या सावित्री, सीता, सावित्री, दमयंती, जैन धर्म व बौद्ध धर्म के समय की महिलाएं भी जागरूक व शिक्षित थीं. अगर हम थेरीगाथा ग्रन्थ को देखें तो इसमें 76 महिलाओं के शास्त्र ज्ञान का वर्णन मिलता है.

स्त्री पुरुष में भेद करना गलत है. उल्लेखनीय है कि पश्चिम में महिला ईश्वर नहीं हो सकती. किन्तु भारत में शक्ति, सद्बुद्धि और समृद्धि महिला है और जब देवता भी हार जाते हैं तो स्त्री शक्ति रक्षा‌ करती है. वर्तमान समाज में मां और बहनों का दायित्व और ज्यादा बढ़ जाता है ताकि समाज के भविष्य को वह संस्कार दें पाएं. पुरानी व्यवस्थाएं प्रकाश में आ रही हैं. मौलिक दर्शन को परिवार की महिलाएं ही संभाल कर रख सकती हैं और परिवारों में आदर्श की स्थापना कर सकती हैं. महिला शक्ति मन में ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है.

कार्यक्रम में लगभग 600 बहनों ने भागीदारी की.

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