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शांति एवं सौहार्द के लिए सकारात्मक पहल करें, मणिपुर हिंसा पर वनवासी कल्याण आश्रम की अपील

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पुणे. गत 3 मई से मणिपुर में हो रही जातिगत हिंसक घटनाएं कहने को तो दो जातियों के बीच हैं, पर ये घटनाएँ केवल कुकी, मैतेई या मणिपुर का नहीं वरन पूरे देश का विषय है; इसलिए पूरे देश के लिए भी चिंता का विषय है.

गत डेढ़ महीने से हो रहे हिंसा के इस नग्न-नाच ने न केवल सैकड़ों लोगों की जान ली है, बल्कि दोनों समुदायों के हजारों लोगों के घर जला दिए गए. वे अपने ही राज्य में शरणार्थियों की तरह राहत शिविरों में रहने को मजबूर हुए हैं. नुकसान केवल जान-माल का ही नहीं हुआ, बल्कि परस्पर विश्वास का हुआ है – जो दो समुदाय हजारों वर्षों से साथ साथ रह रहे हैं, उनका आपसी विश्वास खंड-खंड हो गया है. यही कारण है कि शांति स्थापित करने के केंद्र सरकार के प्रयास भी विफल हो रहे हैं. टूटे हुए आशियाने फिर बन जाएँगे – जुड़ जाएँगे, पर टूटे हुए विश्वास को जोड़ना सबसे बड़ी चुनौती है और इसकी शुरुआत शांति स्थापना और स्थिति सामान्य करने से होगी.

अभी समय इन दुर्भाग्यपूर्ण हिंसक घटनाओं के कारणों को जानने का नहीं, बल्कि शांति और सौहार्द की पुनर्स्थापना का है. जब शासन – सरकार असहाय बन जाता है, देशी-विदेशी स्वार्थी तत्व आग में घी डालने का काम करने लग जाते हैं तो पूरे देश को, देश के सम्मानित आध्यात्मिक व्यक्तियों को, खेल, कला, सिनेमा, प्रतिष्ठित सामाजिक-राजनितिक नेताओं, पूर्व सैन्य-प्रशासनिक अधिकारियों को देश हित में आगे आना होता है. अंतरराष्ट्रीय सीमा का एक क्षेत्र जब इन घटनाओं का केंद्र बन जाता है तो यह जरुरत और भी बढ़ जाती है. आज देश के सामने यही स्थिति खड़ी हो गई है.

अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम और उसके अध्यक्ष के नाते मैं मणिपुर के सभी नागरिकों से ह्रदयपूर्वक अपील करता हूँ कि वे इन सभी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को एक बुरे सपने की तरह मानकर इस परिस्थिति से स्वयं भी बाहर आएं और अपने पड़ोसी-निकटवर्ती लोगों, मित्रों-सम्बन्धियों को भी इसके लिए प्रेरित करें. वे सब लोग किसी ऐसे ही सकारात्मक पहल का इंतजार कर रहे हैं. प्रकृति या मानव निर्मित विनाश से एक न एक दिन तो बाहर निकलना ही होगा, और कोई मार्ग नहीं है.

मैं देश के सम्मानित, आध्यात्मिक महानुभावों, खेल, कला, सिनेमा से जुड़े प्रसिद्ध लोगों, प्रतिष्ठित सामाजिक-राजनितिक नेताओं, पूर्व सैन्य-प्रशासनिक अधिकारियों से भी अपील करता हूँ कि वे इस राज्य के प्रभावित-पीड़ित लोगों के आंसू पोंछने, दुःख की इस घड़ी में उन्हें ढाढस बंधाने और पूरा देश उनके साथ खड़ा है, यह विश्वास दिलाने कि लिए इन क्षेत्रों की शांति-यात्रा करें. ये महानुभाव अपने स्थानों से ही व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से इसके लिए अपील भी जारी करें.

वनवासी कल्याण आश्रम को यह विश्वास है कि इन महानुभावों का यह प्रयास आश्चर्यजनक-सकारात्मक प्रभाव डालेगा. हमें – देश को अब और समय नष्ट नहीं करना चाहिए – पहले ही बहुत विलम्ब हो चुका है, अधिक विलम्ब करने से स्थितियां और बिगड़ सकती हैं. इसलिए हम सभी शीघ्रातिशीघ्र इस दिशा में सकारात्मक पहल करें.

रामचंद्र खराड़ी

(अध्यक्ष, अ. भा. वनवासी कल्याण आश्रम)

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