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समाज में संगठन नहीं, अपितु संपूर्ण समाज का संगठन ही हमारा लक्ष्य – दुर्गादास जी

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जयपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों पर आधारित पुस्तक माला ‘कृतिरूप संघ दर्शन’ का विमोचन गुरुवार को उत्तर पश्चिम क्षेत्र के क्षेत्र प्रचार प्रमुख दुर्गादास जी ने किया. ज्ञान गंगा प्रकाशन की ओर से भारती भवन में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता जयपुर प्रांत के संघचालक डॉ. रमेश जी ने की.

इस अवसर पर क्षेत्र प्रचार प्रमुख दुर्गादास जी ने कहा कि संघ 1925 में अपनी स्थापना से ही समाज को एकात्मता के आधार पर संगठित और अनुशासित बनाने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ा था. गत् 90 वर्षों की कार्यकर्ताओं की कठिन साधना से आज वह दिव्य ध्येय साकार होता दिखाई देता है. ‘जड़ चेतन में वही समाया, कोई भी तो नहीं पराया’ का विचार लेकर संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक समाज हित के कार्यों में सदैव अग्रणी भूमिका निभाता है. संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी की यही दृष्टि रही थी……उनका कहना था कि संघ समाज में कोई एक संगठन नहीं, अपितु संपूर्ण समाज को ही संगठित करने का लक्ष्य लेकर चला है. संघ कार्य निरंतर आगे बढ़ रहा है. आज संघ का देशव्यापी विस्तार स्वयंसेवकों के निःस्वार्थ प्रयासों से हुआ है और परिणाम समाज के सामने है. इसी कारण संघ को लोगों ने नई परिभाषा दी है – रेडी फॉर सेल्फलैस सर्विस यानि आरएसएस.

कार्यक्रम में जयपुर प्रांत संपर्क प्रमुख डॉ. हेमंत सेठिया जी ने पुस्तक विस्तृत परिचय करवाया. कृतिरूप संघदर्शन पुस्तक मूल रूप से सन् 1989 में तत्कालीन सरकार्यवाह हो.वे. शेषाद्री जी द्वारा अंग्रेजी में ‘आरएसएस – ए विज़न, इऩ एक्शन’ नाम से लिखी गई थी. संघ को जानने-समझने वाले लोग सामान्यतया इसी प्रसिद्ध पुस्तक का संदर्भ लेते हैं. विगत वर्षों में संघ द्वारा समाज सेवा के किए नवीन कार्यों को जोड़कर ‘कृतिरूप संघ दर्शन’ पुस्तकमाला को वृहद रूप दिया गया है. पुस्तकमाला के छह पुष्प – राष्ट्रीय एकात्मता, शिक्षा संस्कार, सेवा भाव, गौ-गराम रक्षा, अर्थ आयाम, व धर्म रक्षा विषय से संबंधित हैं.

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