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चीन का मॉडल, विकास का मॉडल नहीं बल्कि विनाश का मॉडल है – डॉ. भगवती प्रकाश शर्मा

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जोधपुर (विसंकें). पेसेफिक विवि के कुलपति एवं स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ. भगवती प्रकाश शर्मा जी ने कहा कि चीन का विकास मॉडल केवल मात्र अधिकतम धनोपार्जन पर आधारित है. पर्यावरण, संस्कार, जीवन मूल्य, सद्भावना एवं भाईचारा कहीं भी मायने नहीं रखते. भारतीय दृष्टिकोण से चीन का विकास मॉडल अधिकतम प्राकृतिक दोहन व विस्तारवादी नीति के कारण अन्य देशों के सम्प्रभु अधिकारों में शुद्ध रूप से अतिक्रमण करने वाला है, यही कारण कि यदि चीनी उत्पादों को खरीदते चले गये तो हम कभी भी विश्व को विकल्प नहीं दे सकेंगे. हम चाइनीज पेन, बल्ब, सोलर पैनल, मोबाईल, पावर प्लांट से लेकर रेलों के उपकरण खरीदेंगे तो देश के इन क्षेत्रों के उद्योग बंद होंगे और हम एक उद्योग रहित व प्रौद्योगिकी विहीन देश बनने की ओर अग्रसर होंगे. चीन की विदेश निति के समर्थन में खड़े होने की एवज में ही वह अफ्रीकी, लैटिन अमेरिकी व एशियाई देशों को सहयोग देता है और उनकी ब्लैक मेलिंग भी करता है. इसका प्रमुख उदाहरण – वर्ष 2014 में चीन ने इसी के बलबूते दक्षिणी अफ्रीका को बाध्य कर तिब्बत के बौद्ध गुरू दलाई लामा की पूर्व निर्धारित प्रवेश की अनुमति को भी निरस्त करा दिया. वे सोमवार (14 अगस्त) को इन्स्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स में आयोजित ‘चीन के विकास मॉडल का भारतीय दृष्टिकोण से आंकलन’ विषयक व्याख्यान कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने चीन की घुसपैठ नीति का जिक्र करते हुए कहा कि वर्ष 2008 तक चीन ने भारत की सीमा में 100 से लेकर 147 बार तक घुसपैठ की घटनाओं को अंजाम दिया, यह संख्या 2011 में 200, 2013 में 400 तक हो गयी थी जो आज दिन भी बढ़ ही रही है. परन्तु भारतीय सेना द्वारा वर्तमान में उठाए गये कदम से इस पर अवश्य अंकुश लगेगा. भारत द्वारा डोकलाम में चीन के सड़क निर्माण को रोकने के कारण चीन द्वारा भारत को लगातार दी जा रही युद्ध की धमकियां उसके विकास मॉडल का ही परिणाम हैं. उन्होंने चीन के इस विकास मॉडल की गति को रोकने के लिए भारत सरकार एवं जनता को चाइनीज सामान न खरीदने का कार्य करने पर बल दिया एवं विश्व में भारत की छवि को बरकरार रखने एवं आर्थिक हितों को संवारने के लिए लघु उद्योगों एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने की आवश्यकता जताई.

उन्होंने कहा कि चीन का विकास मॉडल वर्तमान में ऋणजाल व मंदी में फंस चुका है. ऐसे में जब अमेरिका चीन के साथ उसके व्यापार घाटे पर नियंत्रण करने के लिए गंभीर कदम उठा रहा है. उससे चीनी अर्थव्यवस्था के ध्वस्त हो जाने की पूरी संभवना भी बन जाती है. चीन का कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद के 250 प्रतिशत तक का हो गया है और यदि इसमें चीन के नियमनरहित, कुख्यात छाया बैंकिंग तंत्र के ऋणों को भी जोड़ लें तो चीनी अर्थव्यवस्था में कुल ऋणों का अनुपात उसके सकल घरेलू उत्पाद के 400 प्रतिशत तक के अतिविस्फोटक स्तर तक पहुंच जाता है. जिससे स्पष्ट है कि चीन की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है, ऐसे में भारतीय यदि चीनी सामानों का बहिष्कार कर देते हैं तो चीन की अर्थव्यवस्था को गढ्ढे में जाने के लिए एक जोर का धक्का होगा. वास्तविकता में चीन का मॉडल, विकास का मॉडल नहीं, बल्कि विनाश का मॉडल है.

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी.सिंह जी ने भारतीय स्वदेशी मॉडल जिसमें लघु उद्योगों, कुटीर उद्योगों, गृह उद्योगों के विकास के कारण रोजगार के अवसरों की बहुतायत होती है, उसकी वर्तमान में आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने चीन से भारत की अर्थव्यवस्था, सामरिक क्षेत्र एवं जीओ पॉलिटिक्स को हो रहे खतरों से भी अवगत कराया. चीन में मानवाधिकार उल्लंघन एवं पर्यावरण को हो रहे नुकसान से विश्व जन मानस को भविष्य में बचाने के लिये चीन पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है. कार्यक्रम में प्रो. भगवती प्रकाश द्वारा लिखित चीन की आर्थिक चुनौतियां एवं स्वदेशी पुस्तक का विमोचन किया गया.

राजस्थान उच्च न्यायलय के अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश पंवार एवं स्वदेशी जागरण मंच के क्षेत्रीय संयोजक धर्मेन्द्र दुबे ने भी विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम का संचालन स्वदेशी जागरण मंच के प्रदेश सम्पर्क प्रमुख अनिल वर्मा ने किया. कार्यक्रम में इंस्टीस्यूट ऑफ इंजीनियर्स के अध्यक्ष प्रो. जी. के. जोशी ने अतिथियों का धन्यवाद किया.

 

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