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भाग तीन, नवसृजन की प्रसव पीड़ा है – ‘कोरोना महामारी’

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नरेंद्र सहगल

भारत का वैश्विक लक्ष्य विश्व कल्याण

सर्व सक्षम भारत की आध्यात्मिक परंपरा

एकात्म मानववाद ही भारतीयता है

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रत्येक व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र किसी दैवी उद्देश्य के साथ धरती पर जन्म लेते हैं. कर्म करने में स्वतंत्र सृष्टि के यह सभी घटक जब अपने-अपने कर्तव्यों को स्वार्थ रहित होकर निभाते हैं तो सृष्टि शांत रहती है. परंतु यही घटक जब अपने वास्तविक उद्देश्य को दरकिनार करके अपने अहं का शिकार होकर भटक जाते हैं, तब सृष्टि अशांत हो जाती है और युद्ध, आपदाएं, भयंकर महामारियां जन्म लेती हैं. प्रकृति सामन्जस्य समाप्त होकर अप्राकृतिक साम्राज्य अस्तित्व में आता है.

उपरोक्त संदर्भ में हम केवल भारत वर्ष के वैश्विक लक्ष्य पर ही चर्चा करेंगे. अपने इस देश की धरती पर जितने भी अवतारी महापुरूषों, संतों, महात्माओं एवं ऋषि-मुनियों ने जन्म लिया, सभी का उद्देश्य ‘विश्व कल्याण’ ही था. सभी का एक ही सिद्धांत था, एक ही मान्यता थी वसुधैव कुटुंबकम् अर्थात सारी सृष्टि एक ही परिवार है. एक ही ध्येय वाक्य सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:, सारी सृष्टि का कल्याण.

भारत की धरती पर अवतरित महापुरूषों ने कभी भी अपने को किसी क्षेत्र की सीमा में बांध कर नहीं रखा. पूरे विश्व को ही एक ईश्वरीय इकाई मानकर अपने दैवी उद्देश्य के लिए सदैव तत्पर रहे. इन ऋषियों ने समस्त प्राणियों, पशु-पक्षियों, औषधियों अर्थात् चराचर जगत के कल्याण को ही समक्ष रखते हुए अपने स्वधर्म का पालन किया. संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति के लिए प्रार्थना करने की रीति हमारे देश में प्रचलित है, हम शांति पाठ करते हैं – “ ऊं द्यौ: शांतिअंतरिक्षम् —”

भारत की धरती पर ही महावीर स्वामी, महात्मा बौद्ध, श्रीगुरू नानक देव, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, महर्षि अरविंद जैसी दैव विभूतियों ने अवतार धारण करके मानव जाति की भलाई के लिए तप किए, संघर्ष किए एवं संगठन खड़े किए. कहीं कोई क्षेत्र, जाति अथवा मजहब की संकीर्णता दृष्टिगोचर नहीं होती. यही वजह है कि भारत ने सदैव अन्य देशों से प्रताड़ित, अपमानित और खदेड़ दिए गए समाजों को शरण दी. हमारे आध्यात्मिक शूरवीरों ने किसी का बलात् धर्मांतरण नहीं किया, किसी के पूजा स्थलों को नहीं तोड़ा, अपने निरंकुश साम्राज्य स्थापित नहीं किए और  ना ही किसी को तलवार के बल पर समाप्त करने का अमानवीय कुकृत्य ही किया.

बहुत पीछे न जाएं तो सर्वज्ञात मानवीय इतिहास में ही बहुत कुछ मिल जाएगा जो आज के दुखित विश्व के लिए सहारा बन सकता है. महावीर स्वामी एवं जैन समाज के वैचारिक आधार में शांति, अहिंसा, अपरिग्रह इत्यादि उपदेशों से मानव कल्याण संभव है. महात्मा बुद्ध द्वारा प्रदत्त शांति के सिद्धांतों की आज संसार को आवश्यकता है. श्रीगुरू नानक देव जी की वाणी में अमन चैन की वर्षा होती है. ‘किरत करो-वंड छको- नाम जपो’ अर्थात् परिश्रम करो- बांट कर खाओ और परम पिता परमात्मा का नाम जपो.

अगर आधुनिक काल में हुए प्रयासों के मद्देनजर बात करें तो स्पष्ट होगा कि खालसा पंथ, आर्यसमाज, रामकृष्ण मिशन, गायत्री परिवार, आर्ट आफ लिविंग, पतंजलि योग पीठ एवं दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान इत्यादि संस्थाएं एवं समुदाय समस्त विश्व के ही कल्याण का उद्देश्य लेकर अपने-अपने ढंग से कार्यरत हैं.

खालसा पंथ का उद्देश्य है ‘सकल जगत् में खालसा पंथ गाजे – जगे धर्म हिन्दू सकल भंड भाजे’- अर्थात् समस्त विश्व में खालसा (पवित्र) जनों की गर्जना हो और पाखण्ड का नाश हो. हिन्दू धर्म अर्थात् भारत की सनातन मानवीय संस्कृति का उदय हो. स्वामी दयानंद ने भी “कृणवन्तो विश्वं आर्यंम्” का उद्घोष करके समस्त संसार को आर्य (श्रेष्ठ) बनाने के लिए साधना की थी. स्वामी विवेकानंद ने भी रामकृष्ण मिशन की स्थापना समस्त जगत् के दरिद्र नारायण के उत्थान और मानव जाति के मोक्ष के लिए की थी.

आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर भी अपने प्रायः सभी प्रवचनों में मानवजाति के सुख की बात करते हैं. बाबा रामदेव स्वामी ने भी अष्टांग योग के माध्यम से पूरे विश्व में मानवता की भलाई का बीड़ा उठाया है. स्वामी रामदेव ने तो और भी आगे बढ़ कर भारत को आध्यात्मिक राष्ट्र बनाने की घोषणा कर दी है.

एक सशक्त ‘विश्वव्यापी आध्यात्मिक क्रांति’ को अपना लक्ष्य निर्धारित करके अपने धार्मिक अभियान में जुटी संस्था दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान भी विश्व कल्याण के लिए सक्रिय है. इस आध्यात्मिक अभियान के ध्वजवाहक श्रद्धेय आशुतोष महाराज के शब्दों में इस लेख का विषय स्पष्ट हो जाता है – “भारत विश्व की देह का हृदय है. इसके अध्यात्म परायण रक्त ने समय-समय पर विश्व के निस्तेज अंगों को सींचा है. उनकी मध्यम पड़ती धमनियों में विशुद्ध जीवन का संचार किया है. स्वयं ध्यानस्थ रहकर सदा परमार्थ किया है.”
सनातन भारतीय संस्कृति में मानव समाज को टुकड़ों में बांट कर व्यवहार करने का कहीं कोई उदाहरण नहीं मिलता. प्रकाण्ड विद्वान पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रदत्त एवं प्रचारित ‘एकात्म मानववाद’ का वैचारिक आधार भारत के वैश्विक लक्ष्य का सशक्त हस्ताक्षर ही है. आरएसएस के द्वितीय संरसंघचालक श्रद्धेय श्री गोलवलकर (श्रीगुरू जी) ने भी संघ के उद्देश्य पर भाषण देते हुए कहा था “हमारा लक्ष्य ‘परम वैभवशाली भारत’ है.  यही समस्त विश्व के कल्याण का धरातल है. सर्वांग उन्नत भारत ही विश्वगुरू के सिंहासन पर शोभायमान था और भविष्य में होगा.”

वर्तमान कोरोना संकट सारे संसार को भौतिकवाद को तिलांजलि देकर अध्यात्म के मार्ग पर चलने का संदेश दे रहा है…..क्रमशः

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं.)

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