नई दिल्ली (इंविसंके). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य अशोक जी बेरी ने स्वयंसेवकों से देश में चातुरवर्ण्य जाति-व्यवस्था को सामाजिक समरसता के लिये अत्यंत बाधक बताते हुए राष्ट्रबोध जागरण के काम में जुटने का आह्वान किया और कहा कि संघ समतायुक्त, शोषणमुक्त समाज का निर्माण चाहता है, इसके लिये सभी का योगदान अपेक्षित है.
पूर्वी दिल्ली के दिलशाद गार्डन स्थित डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी मेमोरियल हायर सेकेन्डरी स्कूल में संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष (सामान्य) के समापन के अवसर पर उद्बोधन में बेरी जी ने कहा कि आज सर्वप्रथम आवश्यकता समाज में एकात्म भाव जगाने की है. इसी भाव-जागरण से सम्पूर्ण समाज एकरस बनेगा. उन्होंने इसके लिये भारतीय मान-बिंदुओं के प्रति आस्थावान सभी जातियों के पारस्परिक संवाद को आवश्यक बताया और कहा कि सब जातियों के सम्मिलन से ही हिंदू समाज की रचना होती है.
उन्होंने महात्मा गांधी के उस वक्तव्य का उद्धरण दिया, जिसमें उन्होंने वर्धा में हुये अपने अनुभव को अभिव्यक्त किया था. वस्तुत: 16 सितम्बर, 1947 को गांधी जी दिल्ली की सफाई कर्मियों की कॉलोनी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में पधारे थे. अपने भाषण में उन्होंने स्मरण किया कि अनेक वर्ष पूर्व जब संघ के जन्मदाता परम पूज्य डॉ. हेडगेवार जीवित थे, उन्हें सेठ जमनालाल बजाज दिसम्बर 1934 में
वर्धा में संघ के एक शीत शिविर में ले गये थे. वे उस शिविर में अत्यन्त सादगी और अनुशासन के साथ-साथ यह देखकर अत्यन्त प्रभावित हुये थे कि वहां छुआछूत का नामोनिशान तक नहीं था. गांधी जी ने कहा, “संघ तब से अब तक बहुत बढ़ गया है. मुझे पक्का यकीन है कि जिस संस्था की प्रेरणा सेवा और आत्मत्याग होगी, वह अवश्य शक्तिशाली होगा. अशोक जी ने कहा कि स्वाभाविक ही गांधीजी को संघ-शिविर में यह देखकर अत्यन्त आनंद हुआ होगा कि वहां हिन्दू समाज के सभी वर्णों के युवक एकसाथ रहते थे. वे आश्चर्यचकित रह गये थे, यह देखकर कि साथ-साथ रहने वाले इन युवकों को एक-दूसरे की जाति का पता ही नहीं था, उनके मन में यह भाव ही नहीं जगा कि कौन किस जाति का है. देशभक्ति के गहरे रंग ने उन सबको सामाजिक समरसता के एक ही रंग में रंग दिया था. इस अनुभव की छाप गांधीजी के मन पर इतनी गहरी थी कि काफी वर्ष बाद संघ की शाखा को दोबारा देखने पर वह दृश्य उनकी आंखों में सजीव हो उठा था. उन्होंने कहा कि “ हिंदू दृष्टि में कोई जाति भेद नहीं है. हम सबको भारत माता की संतान मानते हैं. इसे व्यवहार में उतारना पड़ेगा”.
उन्होंने 1948 में पाकिस्तान के आक्रमण, 1975 के आपातकाल और 1992 में श्री राम जन्म भूमि आंदोलन के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सराहनीय भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि संघ उत्कट राष्ट्र भक्ति से ओत-प्रोत राष्ट्र सेवा को समर्पित संगठन है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीयता का प्रसार 40 अन्य देशों में भी हो रहा है. वहां यह कार्य हिन्दू स्वयंसेवक संघ के नाम से होता है. उन्होंने आशा व्यक्त की कि आने वाले समय में संघ का विचार सम्पूर्ण समाजव्यापी बनेगा. उन्होंने कहा “सारा समाज इस दिशा में आगे चलकर संघ समाज में और समाज संघ में घुलमिल जायेगा”. संघ के विविध क्षेत्रों में कार्यरत संगठन यथा भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, विश्व हिन्दू परिषद और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का भविष्य उज्जवल है. ये विराट आकार ग्रहण कर शक्तिशाली बनेंगे. इन संगठनों में किसान, मजदूर, हिन्दू चेतना से संपन्न लोग और विद्यार्थी सम्मिलित हों, यह अनिवार्य नहीं कि वे स्वयंसेवक हों.
24 मई 2015 से शुरू हुए संघ शिक्षा वर्ग में 295 शिक्षार्थी सम्मलित हुये. वर्ग में कुल 26 शिक्षकों एवं 72 प्रबंधक तीन सप्ताह तक शिक्षार्थियों के साथ शिक्षण कार्यक्रम में निरंतर लगे रहे. वर्ग को संघ के वरिष्ठ अधिकारियों का सान्निध्य भी मिला, जिनमें सह सरकार्यवाह वी भागय्या जी, क्षेत्र प्रचारक प्रेम कुमार जी, क्षेत्र संघचालक बजरंग लाल, क्षेत्र प्रचारक प्रमुख रामेश्वर जी और सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री सतीश जी शामिल हैं.
समापन समारोह की अध्यक्षता दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव दीपक मोहन सपोलिया ने की. सपोलिया जी ने कहा कि वे स्वयंसेवकों के शिक्षण को देख विस्मित हैं, यहां शारीरिक ही नहीं अपितु नैतिक शिक्षा का पूरा प्रशिक्षण दिया जाता है जो एक स्वस्थ और जिम्मेदार नागरिक के लिये जरूरी है. आज के कार्यक्रम को देख उनकी सोच में बदलाव आया है. इससे पूर्व, वर्ग कार्यवाह श्री विनय जी ने वर्ग का वृत्त प्रस्तुत किया. मंच पर दिल्ली प्रांत के संघचालक कुलभूषण आहूजा व वर्गाधिकारी रविन्द्र जी भी विराजमान थे.