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30 अक्तूबर / जन्मदिवस – बहुमुखी कल्पनाओं के धनी मोरोपन्त पिंगले जी

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moropant pingle 1नई दिल्ली. संघ के वरिष्ठ प्रचारक मोरोपन्त पिंगले जी को देखकर सब खिल उठते थे. उनके कार्यक्रम हास्य-प्रसंगों से भरपूर होते थे. पर, इसके साथ ही वे एक गहन चिन्तक और कुशल योजनाकार भी थे. संघ नेतृत्व द्वारा सौंपे गए हर काम को उन्होंने नई कल्पनाओं के आधार पर सर्वश्रेष्ठ ऊंचाइयों तक पहुंचाया. उनका पूरा नाम मोरेश्वर नीलकंठ पिंगले था. उनका जन्म 30 अक्तूबर, 1919 को हुआ था. वे बचपन में मेधावी होने के साथ ही बहुत चंचल एवं शरारती भी थे. वर्ष 1930 में संघ के स्वयंसेवक तथा वर्ष 1941 में नागपुर के मौरिस कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल करने के पश्चात प्रचारक बने. प्रारम्भ में उन्हें मध्य प्रदेश के खंडवा में सह विभाग प्रचारक बनाया गया. इसके बाद वे मध्यभारत के प्रांत प्रचारक तथा फिर महाराष्ट्र के सह प्रांत प्रचारक बने. क्रमशः पश्चिम क्षेत्र प्रचारक, अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख, बौद्धिक प्रमुख, प्रचारक प्रमुख तथा सह सरकार्यवाह के बाद केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे.

मोरोपंत जी को समय-समय पर दिये गये विविध प्रवृत्ति के कामों के कारण अधिक याद किया जाता है. छत्रपति शिवाजी की 300वीं पुण्यतिथि पर रायगढ़ में भव्य कार्यक्रम, पूज्य डॉ. हेडगेवार जी की समाधि का निर्माण तथा उनके पैतृक गांव कुन्दकुर्ती (आंध्र प्रदेश) में उनके कुलदेवता के मंदिर की प्रतिष्ठापना, बाबासाहब आप्टे स्मारक समिति के अन्तर्गत विस्मृत इतिहास की खोज, वैदिक गणित तथा संस्कृत का प्रचार-प्रसार आदि उल्लेखनीय हैं. आपातकाल में भूमिगत रहकर तानाशाही के विरुद्ध आंदोलन चलाने में मोरोपंत जी की बहुत बड़ी भूमिका थी. वर्ष 1981 में मीनाक्षीपुरम् कांड के बाद संघ ने हिन्दू जागरण की जो अनेक स्तरीय योजनाएं बनाईं, उसके मुख्य कल्पक और योजनाकार भी वही थे. इसके अन्तर्गत ‘संस्कृति रक्षा निधि’ का संग्रह तथा ‘एकात्मता रथ यात्राओं’ का सफल आयोजन हुआ.

‘विश्व हिन्दू परिषद’ के मार्गदर्शक होने के नाते उन्होंने ‘श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन’ को हिन्दू जागरण का मंत्र बना दिया. श्री रामजानकी रथ यात्रा, ताला खुलना, श्रीराम शिला पूजन, शिलान्यास, श्रीराम ज्योति, पादुका पूजन आदि कार्यक्रमों ने देश में धूम जागरण का कार्य किया. छह दिसम्बर, 1992 को बाबरी कलंक का परिमार्जन इसी जागरण का सुपरिणाम था.

गोवंश रक्षा के क्षेत्र में भी उनकी सोच बिल्कुल अनूठी थी. उनका मत था – गाय की रक्षा किसान के घर में ही हो सकती है, गोशाला या पिंजरापोल में नहीं. गोबर एवं गोमूत्र भी गोदुग्ध जैसे ही उपयोगी पदार्थ हैं. यदि किसान को इनका मूल्य मिलने लगे, तो फिर कोई गोवंश को कोई नहीं बेचेगा. उनकी प्रेरणा से गोबर और गोमूत्र से साबुन, तेल, मंजन, कीटनाशक, फिनाइल, शैंपू, टाइल्स, मच्छर क्वाइल, दवाएं आदि सैकड़ों प्रकार के निर्माण प्रारम्भ हुए. ये मानव, पशु और खेती के लिए बहुउपयोगी हैं. अब तो गोबर और गोमूत्र से लगातार 24 घंटे जलने वाले बल्ब का भी सफल प्रयोग हो चुका है.

उनका मत था कि भूतकाल और भविष्य को जोड़ने वाला पुल वर्तमान है. अतः इस पर सर्वाधिक ध्यान देना चाहिए. उन्होंने हर स्थान पर स्थानीय एवं क्षेत्रीय समस्याओं को समझकर कई संस्थाएं तथा प्रकल्प स्थापित किये. महाराष्ट्र सहकारी बैंक, साप्ताहिक विवेक, लघु उद्योग भारती, नाना पालकर स्मृति समिति, देवबांध (ठाणे) सेवा प्रकल्प, कलवा कुष्ठ रोग निर्मूलन प्रकल्प, स्वाध्याय मंडल (किला पारडी) की पुनर्स्थापना आदि की नींव में मोरोपंत जी ही हैं.

मोरोपंत जी के जीवन में निराशा एवं हताशा का कोई स्थान नहीं था. वे सदा हंसते और हंसाते रहते थे. अपने कार्यों से नई पीढ़ी को दिशा देने वाले मोरोपंत पिंगले जी का 21 सितम्बर, 2003 को नागपुर में ही देहांत हुआ.

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