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हमें कला जगत में भारतीय कला विमर्श को स्थापित करना है

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2,000 से अधिक कलाकार अखिल भारतीय कला साधक संगम में हुए शामिल

बेंगलुरु. संस्कार भारती द्वारा बेंगलुरु में आयोजित चार दिवसीय “अखिल भारतीय कलासाधक संगम” आज पूर्ण हुआ. इस दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर गुरुजी उपस्थित रहे.

सरसंघचालक जी ने कहा कि संस्कार भारती संगठन अब एक स्थिति में आ गया है, कला जगत में उसका एक स्थान भी बन गया है और उसका अपना सामर्थ्य भी बना है. उस सामर्थ्य के आधार पर आगे बढ़ना है तो हमको आगे विचार करना पड़ेगा. कार्य प्रारंभ करते समय संगठन का एक उद्देश्य होता है. कार्य की वृद्धि के अनेक चरण होते हैं, लेकिन दिशा नहीं बदलती. कार्य का गंतव्य नहीं बदलता. हमें भारतीय कला जगत में भारतीय कला विमर्श को स्थापित करना है.

कला संस्कार देने के लिए है, समाज को समरस बनाने के लिए है. एक ऐसा समाज जो संपूर्ण विश्व को अपने चरित्र का उदाहरण देकर उससे जीवन की सीख दे. ऐसा अपना समाज बनाने के लिए कला जगत में कुछ कलाकारों का काम होने से नहीं होगा, ये संपूर्ण कला जगत का काम है और संपूर्ण कला जगत को उसकी ओर प्रवृत्त होना होगा.

भारतीय कला का विमर्श है – सत्यम, शिवम, सुंदरम. सत्य को छिपाता नहीं है, सत्य को जैसा है, वैसा बताता है. और ऐसे बताता है कि उसको जानने के पश्चात सारी प्रवृत्ति शिवत्व की ओर मुड़ती है. अभी कला जगत में विमर्श समाजोन्मुख नहीं है, कुछ निरर्थक विवादों में अटक जाता है. या फिर कला का विमर्श समाज में अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति करने के लिए, समाज को तड़ने वाला विमर्श पैदा करने के लिए मोड़ा जाता है.

समाज में अभद्रता को अधिक सामने लाएंगे, सारी दुनिया इस संकट से पीड़ित है. अपने जीवन का मांगल्य, जीवन की व्यवस्था, व्यवहारों का अनुशासन, सब पर आक्रमण सारे देशों के लोग अनुभव कर रहे हैं. सबसे त्रस्त प्रगत देश हैं. वोकिज्म, कल्चरल मार्क्सिज्म ऐसे अनेक नामों से ये बातें आती हैं, इनका विचारधाराओं से कोई संबंध नहीं. मुट्ठीभर लोगों के अपने स्वार्थ के लिए झूठा शब्द जंजाल खड़ा करके उसके माध्यम से सारे देशों को विघटित रखना और अपना उल्लू सीधा करना, ये बड़ी कहानी दुनिया में चल रही है और सब लोग चिंतित हैं कि इससे कैसे छुटकारा पाएं.

उन्होंने कहा कि कला के द्वारा मांगल्य स्थापित करने वाला, कला के द्वारा समत्व स्थापित करने वाला, कला के द्वारा समरसता स्थापित करने वाला विमर्श, ये दुनिया में प्रभावी करने के लिए भारत को उस विमर्श को लेकर खड़ा होना पड़ेगा. आत्मवत् सर्वभूतेषु, ये जिसका आधार है, उस संस्कृति को कला माध्यम से व्यक्त करने वाला विमर्श प्रभावी होना चाहिए. अपने समाज के लिए, अपनी कला के लिए ईश्वर प्रदत्त कर्तव्य को सफल करने के लिए हमें इस ओर ध्यान देना पड़ेगा.

केवल सत्यत्व अथवा शिवत्व पर हम कला की सुंदरता नहीं नापते. सत्य और शिव साथ चलता है तब कला सुंदर होती है, ऐसा हम मानते हैं. और सत्यम, शिवम, सुंदरम हमारी कला दृष्टि है.

श्री श्री रविशंकर ने कला साधकों को संबोधित करते हुए देश के ऐतिहासिकता का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि भारत पुरातन है, नित्य नूतन है और यही सनातन है. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रशंसा करते हुए भारत के उज्ज्वल भविष्य के नींव की शुरुआत संघ से बताया. राष्ट्रीय भक्ति और देव भक्ति एक समान ही है. उन्होंने राममंदिर निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने के फैसले का स्वागत किया.

इस दौरान वर्ष 2024 के पद्म पुरस्कार से सम्मानित देश के अलग-अलग राज्यों से आए कलाकारों का तथा रामलला की मूर्ति निर्माण करने वाले शिल्पकार अरुण योगीराज और गणेश भट्ट को भी संघ प्रमुख मोहनराव भागवत ने सम्मानित किया.

कार्यक्रम में संस्कार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष वासुदेव कामत, भगवान कृष्ण की भूमिका निभाने वाले नीतीश भारद्वाज, हेमलता एस. मोहन, मैसूर मंजुनाथ, राष्ट्रीय महामंत्री अश्विन दलवी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य, 2024 के पद्म भूषण पुरुस्कार से सम्मानित राजदत्त, व अन्य गणमान्य लोगों की गरिमामय उपस्थिति रही.

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