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धरोहरों को सहेजने की जिम्मेदारी हमारी भी

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“इन्वेस्ट इन अवर अर्थ” अर्थात ‘हमारी पृथ्वी में निवेश करें’. इस बात को ध्यान में रखकर वर्ष २०२२ में विश्व पृथ्वी दिवस मनाया गया. यह दिवस मनाने की शुरुआत वर्ष 1970 में हुयी थी, उस समय से चला आ रहा यह दिवस अब विश्व के १९० से अधिक देशों में मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य यही रहता है कि हम पृथ्वी माता के महत्त्व को समझें और उसमें जो परिवर्तन हो रहा है, उन पर नियंत्रण करें. साथ ही पृथ्वी माता के लिए बेहतर परिवेश उपलब्ध करने हेतु जो पहल कर सकें, उस पर ध्यान दें. इसलिए आवश्यकता है कि पृथ्वी माता के लिए हम सभी एकजुट होकर कार्य करें, इसी से विश्व सही दिशा में आगे बड़ पाएगा.

धर्मग्रंथों के अनुसार, विष्णु पुराण में माता पृथ्वी के बारे में बताया गया है. इसके अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी माता की रक्षा हेतु वराह अवतार लिया था.

बात तब की है, जब राक्षस हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र की गहराइयों में धकेल दिया था, पृथ्वी के समुद्र की गहराइयों में डूब जाने से पृथ्वी पर कार्य बाधित होने लगा था. जिसके बाद देवगण भगवान विष्णु के पास पहुंचे तथा उनसे हिरण्याक्ष नामक राक्षस का विनाश करने का आग्रह किया. जिसके बाद भगवान् विष्णु ने हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध करने के लिए वराह रूप धारण किया. तब भगवान विष्णु के वराह अवतार ने अपने नुकीले और लम्बे दांत की मदद से पृथ्वी को महासागार की गहराइयों से बाहर निकाल लिया.

भगवान विष्णु के वराह अवतार के पूजन अर्चन के लिए देश में अनेक स्थानों पर अवतार की प्रतिमाएं स्थापित हैं. मध्यप्रदेश के सागर जिले में एरण नामक स्थान, विदिशा (भेलसा, वेसनगर….) जिले से कुछ किलोमीटर दूर उदयगिरी की गुफाओं में वराह अवतार की बड़ी प्रातिमा व रॉक कट मौजूद हैं.

इससे अलग विदिशा जिले की तहसील गंजबासौदा से कुछ ही किलोमीटर दूर सुनारी ग्राम में वराह अवतार की अत्यंत सुन्दर प्रतिमा स्थापित है, जो लोगों को अपनी और आकर्षित करती है.

एएसआई के लिए अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा देने वाले डॉ. नारायण व्यास जी को वराह अवतार की प्रतिमा की फोटो भेजी, तो उनका स्पष्ट शब्दों में कहना था कि जिस स्थान से ये प्रतिमा मिली है, वहां संभवतः वराह का मंदिर अवश्य रहा होगा. बस स्थान ढूंढना एक चुनौती है. प्रयास करने पर सफलता मिलेगी. उन्होंने बताया कि दशार्ण वैष्णव धर्म का क्षेत्र था, विशेष रूप से विदिशा के आसपास का क्षेत्र. इसलिए कई वैष्णव मंदिर होने की संभावना है.

प्रतिमा की मुख्य विशेषता यह है कि ये वराह अत्यंत क्रोधित हैं. उनके अगले पैर के आसपास विष्णु के अवतार नरसिंह, वामन इत्यादि के होने की भी बात कही. इस सुंदर मूर्ति को देखने से ही दिव्यता का अनुभव होता है. जब मैंने इसे पहली बार देखा तो इसे निहारने के अलावा कुछ और कर ही नहीं पाया.

जब जिज्ञासावश डॉ. व्यास जी से मूर्ति के बारे में जानने को बात की तो उन्होंने बताया कि यह बहुत ही सुन्दर विष्णु के वराह अवतार की प्रतिमा है, जिसमें विष्णु वराह के रूप में स्त्री रूप में बताई जलमग्न पृथ्वी का उद्धार कर रहे हैं. हिरण्याक्ष दानव (हिरण्यकश्यप का बड़ा भाई) ने पृथ्वी को समुद्र तल में ले जाकर छिपा दिया था.

उन्होंने बताया कि वराह के ऊपर सभी प्रकार के देवता, अष्टदिक्पाल, नवग्रह, इत्यादि उत्कीर्ण हैं. पाताल के दृश्य में शेषनाग दिखाया है.

यह प्रतिमा इसलिए भी विशेष हो जाती है क्योंकि इसमें विष्णु के तृतीय अवतार के साथ ही द्वितीय अवतार कच्छप को भी देखा जा सकता है. शेषनाग के ठीक पीछे कछुए का मुँह स्पष्ट दिखाई देगा. इसमें उनके प्रतीक गदा, पद्म, चक्र और शंख भी देखे जा सकते हैं. यह विशेष महत्त्व की प्रतिमा अब भी सुनारी ग्राम के एक छोटे से मंदिर में खुले में रखी हुई है, जिसके संरक्षण की आवश्यकता है.

यह तो एक प्रतिमा है जो नज़रों के सामने बनी हुई है, देश भर में अनेक स्थल हैं…जहाँ पर ऐसे ही विशेष महत्त्व और वेहद ही मूल्यवान प्रतिमाएं स्थापित हैं. यहाँ के जागरूक नागरिकों को इस और ध्यान देने की आवश्यकता है, जिससे असली भारत के दर्शन कराने वाली धरोहरें सही स्थान पर पहुँच सकें.

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