करंट टॉपिक्स

पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र, बर्फ द्रव्यमान, भूकंप, ज्वालामुखी का सर्वे करेगा ‘NISAR’

Spread the love

नई दिल्ली. NISAR (नासा-इसरो सेंथेटिक अपर्चर रडार) को कुछ परीक्षणों के बाद अगले साल की पहली तिमाही में लॉन्च करने की संभावना है.

रिपोर्ट्स के अनुसार, निसार लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) वेधशाला है. इसे इसरो और नासा संयुक्त रूप से विकसित कर रहे हैं. प्रक्षेपण के बाद निसार हर 12 दिन में पूरी दुनिया का नक्शा तैयार करेगा. यह पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र, बर्फ द्रव्यमान, वनस्पति बायोमास, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी और भूस्खलन सहित प्राकृतिक खतरों को समझने के लिए सुसंगत डाटा प्रदान करेगा.

निसार में सिंथेटिक अपर्चर रडार इंस्ट्रूमेंट (एसएआर), एल-बैंड एसएआर, एस-बैंड एसएआर और एंटीना रिफ्लेक्टर होंगे. ऑनबोर्ड उपकरण अंतरिक्ष से एक सेंटीमीटर का मामूली बदलाव भी देख सकते हैं. एसयूवी आकार वाले निसार का द्रव्यमान करीब 2,800 किलोग्राम है. यह करीब चार किलोवॉट बिजली प्रदान करने वाली दो सौर प्रणालियों से संचालित होगा.

नासा निसार प्रोजेक्ट मैनेजर फिल बरेला ने बुधवार को कहा कि इसरो अगले साल की पहली तिमाही में अनुमान लगा रहा है, इसका मतलब यह पूरी तरह से तैयार है. यह परीक्षण खासकर कंपन को लेकर किए जाने हैं. इस मिशन का कार्यकाल तीन वर्षों का होगा. यह पृथ्वी पर मौजूद जमीन और बर्फ से आच्छादित क्षेत्र का हर 12 दिनों में सर्वे करेगा.

वर्तमान में बचे परीक्षण को लेकर बताया कि कंपन को लेकर परीक्षण जारी है. पूरी प्रणाली बेहतर तरीके से कार्य करे, इसके लिए बैट्री और सिमुलेशन परीक्षण किए जा चुके हैं.

नासा जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी की निदेशक ने कहा कि निसार मिशन पिछले अन्य मिशनों से बेहतर होगा.

नासा में निसार के प्रोजेक्ट मैनेजर फिल बरेला और जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी की निदेशक डॉ. लॉरी लेशिन ने बेंगलूरु में मीडिया को बताया कि निसार एक तरह से पृथ्वी की सतह को देखने वाली रडार मशीन है जो बताएगी कि पृथ्वी कैसे बदल रही है. इसकी लॉन्चिंग से पहले कई परीक्षण किए जाने हैं. इनमें कंपन परीक्षण सबसे अहम है. निसार का प्रक्षेपण इसरो के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क-2 के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया जाएगा. डॉ. लॉरी लेशिन के मुताबिक निसार मिशन के साथ हम क्षमता के नए स्तर पर पहुंचेंगे. पृथ्वी को बहु-वर्षीय टाइमस्केल पर बदलते हुए देखना बेहद महत्त्वपूर्ण है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *