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भारतीय धर्म, इतिहास और संस्कृति के गौरव प्रभु श्रीराम

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प्रमोद भार्गव

कांग्रेस ने राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम के आमंत्रण को ठुकरा कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है. इसका हश्र वही होगा, जो भगवान राम ने श्रीलंका पर आक्रमण करने से पहले शांति समझौते का प्रस्ताव लेकर अंगद को लंका भेजा था. लेकिन अहंकारी रावण ने राम के प्रस्ताव को नकार कर अपनी मौत के साथ सत्ता का पराभव तो झेला ही, कुल का नाश भी कर बैठा.

कांग्रेस ने भारतीय धर्म, इतिहास और संस्कृति के गौरव प्रभु श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होने का निर्णय लेकर बड़ी भूल की है. भारत के किसी भी राजनीतिक दल को नहीं भूलना चाहिए कि वे राम ही थे, जिन्होंने उत्तर से दक्षिण और कृष्ण ने पूरब से पश्चिम की यात्रा करके भारत को धार्मिक और सांस्कृतिक एकरूपता देने का अविस्मरणीय कार्य किया था. इसी एकरूपता की परंपरा के चलते आज भी भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता कायम है. राम की इसी महिमा को समझते हुए संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर और संविधान सभा के सदस्यों ने संविधान के प्रथम पृष्ठ पर राम दरबार को चित्रित करवाया. क्योंकि डॉ. आंबेडकर जानते थे कि संविधान की संहिताएं तो एक इबारत भर हैं, इनका पालन राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम के प्रेरक अनुशासन से ही संभव है. लेकिन अपने ही पतन की ओर बढ़ रही कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति से आज भी उभर नहीं पा रही है.

असमंजस के दौर से गुजर रही कांग्रेस ने पूरे कार्यक्रम को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा का आयोजन बताते हुए किनारा करने का बहाना बनाया है. कांग्रेस इसे राजनीतिक कार्यक्रम-करार दे रही है. जबकि महात्मा गांधी से एक पादरी ने पूछा था कि ‘क्या वे राम को भगवान के रूप में अवतार मानते हैं?’ तब गांधी जी ने उत्तर दिया, ‘यदि आप भारतीय दर्शन के ज्ञाता हो तो यह समझ जाएंगे कि जीव मात्र परम सत्ता का अवतार ही है. हमारे बीच से जो लोग विभूतियों से संपन्न होते हैं, वे विशेष अवतार हो जाते हैं. इसी अर्थ में राम अवतार हैं और हम उन्हें भगवान मानते हैं. अतएव राम इतिहास पुरुष भी हैं और दिव्य अवतार भी’.

राम की सांस्कृतिक-धार्मिक ऐतिहासिकता सिद्ध करने का इससे सार्थक कोई दूसरा उदाहरण कांग्रेस को अपने पूर्वजों से मिल नहीं सकता? गोया, अपने पूर्वजों से सबक लेने की बजाय, कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अयोध्या के राम मंदिर उद्घाटन को लेकर नरेंद्र मोदी की आलोचना तो की ही, 14 फरवरी को अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी में एक हिन्दू मंदिर का उद्घाटन नरेंद्र मोदी से करवाए जाने की भी निंदा की. अपने ट्विटर हैंडल पर थरूर ने कहा, 2024 में भाजपा अपने मूल संदेश पर लौटेगी और मोदी को हिन्दू हृदय सम्राट के रूप में पेश करेगी. इसी साल के लोकसभा चुनाव में हिन्दुत्व बनाम लोक-कल्याण को वास्तविक मुद्दा बना दिया जाएगा.

खैर, अभिव्यक्ति की आजादी के चलते कोई कुछ भी कहे, इतना तय है कि इस राम-महोत्सव के साथ भारत सांस्कृतिक-आध्यात्मिक राष्ट्रीयत्व की छाया में आगे बढ़ता दिखाई देगा. सनातन हिन्दू संस्कृति ही अखंड भारत की संरचना का वह मूल गुण-धर्म है, जो इसे हजारों साल से एक रूप में पिरोये हुए है. इस एकरूपता को मजबूत करने की दृष्टि से भगवान परशुराम ने मध्यभारत से लेकर अरुणाचल प्रदेश के लोहित कुंड तक आतताईयों का सफाया कर अपना फरसा इसी कुंड के जल से धोया था. वहीं राम ने उत्तर से लेकर दक्षिण तक और कृष्ण ने पश्चिम से लेकर पूरब तक सनातन संस्कृति की स्थापना के लिए सामरिक यात्राएं कीं. इन्हीं यात्राओं से भारत का जनमानस सांस्कृतिक रूप से समरस हुआ. इसीलिए समूचे प्राचीन आर्यावर्त में वैदिक और रामायण व महाभारत कालीन संस्कृति के प्रतीक चिन्ह मंदिरों से लेकर विविध भाषाओं के साहित्य में मिलते हैं. सांस्कृतिक राष्ट्रीयता की इन्हीं स्थापनाओं ने दुनिया के गणतंत्रों में भारत को प्राचीनतम गणतंत्र के रूप में स्थापित किया.

मंदिरों से जुड़े कायाकल्प केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि वे अर्थव्यवस्था, आत्मनिर्भरता और स्व-रोजगार के साथ आधुनिक और वैज्ञानिक विकास को भी मजबूत धरातल दे रहे हैं. अयोध्या में पांच सौ सालों से आहत सनातन सभ्यता को नई गरिमा मिली है. अयोध्या में सुनहरे क्षितिज का भविष्य लिखते हुए वाल्मीकि हवाई अड्डा बन गया है, जो देश ही नहीं दुनिया में रहने वाले हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए राम दर्शन की यात्रा आसान करेगा और भारत में विदेशी मुद्रा आएगी, साथ ही अयोध्या में स्थानीय रोजगारों को बल मिलेगा. वाराणसी, उज्जैन और अन्य धार्मिक पर्यटनों को दृष्टिगत रखते हुए ही दुनिया के सबसे बड़े 1000 विमानों की खरीद के आदेश एयर इंडिया और इंडिगो ने दिए हैं. हवाई यातायात की यह तेज गति विकसित होते भारत की बानगी तो है ही राष्ट्रीय एकता की संवाद-शक्ति भी बन रही है. सरकार इसी क्रम में केदारनाथ और बदरीनाथ धाम का पुनर्विकास कर रही है. यह आध्यात्मिक पुनर्जागरण का ऐसा उपाय है, जिससे स्वतंत्रता के बाद के सभी शासक कथित धर्मनिरपेक्षता आहत न हो जाए, इस कारण बचते रहे, जबकि इन उपायों से ही भारत की संप्रभुता और अखंडता बहाल हुई है. जिनका 1400 साल पहले भारत भूमि पर इस्लाम के प्रवेश के बाद दमन होता चला आ रहा था. तलवार की धार से किए गए इस दमन का ही परिणाम था कि लाखों हिन्दू मुसलमान बन गए. जिन्होंने धर्म परिवर्तन नहीं किया, उन्हें मैला ढोने जैसे कार्यों के लिए मजबूर करके अपमानित व अभिशापित किया.

किंतु अब समय का चक्र कुछ विपरीत दिशा में घूमने लगा है. अनेक प्रतिष्ठित मुस्लिम हस्तियां नए तथ्यों और साक्ष्यों से अवगत होकर न केवल अपनी मानसिकता को बदल रही हैं, बल्कि अपने मूल हिन्दू धर्म में भी लौटने लगे हैं.

 

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