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प्राण प्रतिष्ठा – अयोध्या के उल्लास में प्रलाप के स्वर

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जिन वीर बुद्धिमानों को दूर बैठे अयोध्या फूटी आँखों नहीं सुहा रही, आकर देख लेंगे तो जलकर खाक ही हो जाएंगे. कितनी दूर से आए आम लोग बड़े भाव से पीढ़ियों का स्वप्न साकार होता देखने कड़ाके की सर्दी में डटे हैं. वे किसी दल के नहीं हैं. वे केवल राम के निर्दोष प्रेमी हैं. उनका उपहास मत करो.

सरकारों की खिंचाई के अवसर कभी कम न होंगे. खूब निंदा करना. दिन रात अखंड रूप से गालियाँ बक लेना. एक तम्बू में सब इकट्ठे होकर कोसना. किसी को मत छोड़ना. जिस-जिस ढंग से बुरा भला कह और कर सकते हो, कर लेना. किंतु अयोध्या का प्रसंग ऐसा नहीं है. अवध में कहावत है कि हलवाई से बैर हो तो पकवान को निशाना नहीं बनाते.

क्या आप नहीं जानते कि श्री राम भारत की आत्मा में बसे हैं. अयोध्या का उनसे अटूट संबंध युगों से है. पाँच सौ साल से निर्वासित प्रभु को एक मन्दिर आम लोगों के सहयोग से बन रहा है. हम सबने अपना अंश लगाया है. मैं बीस दिन से हूं मेरे वृद्ध पिता दूर गाँव से हर दिन प्रभु की खैर खबर ले रहे हैं. क्यों? उनका क्या नाता है. वे इस अवसर पर मेरे यहाँ होने को अपने वंश के पुण्य प्रताप मान रहे हैं. उनके ह्रदय में ऐसा क्या है? वे किसी दल के नहीं हैं. बहुत साधारण किसान हैं.

आप थोड़ा धैर्य रख लेते. लोकतंत्र है. कल किसी और मसले पर आक्रमण करते. संपूर्ण शक्ति से करते. आपके अंधे विरोध की यह घृणित पराकाष्ठा है. कृपया रुक जाइये. मीडिया में वर्षों आप सबकी अपनी एक हैसियत रही है. उसी का ख्याल कीजिए.

अयोध्या आपका प्रलाप सुन रही है. सबको बहुत अजीब लग रहा है. एक हफ्ता ही मौन रह लीजिए. फिर भी खूब मौके मिलेंगे. राम आपकी भी सुन लेंगे. चुप हो जाइए.

सबके राम

(विजय मनोहर तिवारी के फेसबुक से साभार)

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