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शत्रुओं से राष्ट्र रक्षा का सामूहिक संकल्प लेना रक्षाबंधन है – मुकुल कानितकर

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काशी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार टोली के सदस्य मुकुल कानितकर जी ने कहा कि जब संस्कृति को आचरण में रखा जाएगा, तब वह सुरक्षित रहेगी. रक्षाबंधन राष्ट्र की, समाज की, धर्म की रक्षा का बंधन है. वर्तमान में शत्रुओं से राष्ट्र रक्षा का सामूहिक संकल्प लेना रक्षाबंधन है. मुकुल जी बुधवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शताब्दी भवन में दक्षिण भाग की ओर से आयोजित रक्षाबंधन उत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित कर रहे थे.

उहोंने कहा कि भारत उत्सव प्रधान संस्कृति है. 365 दिनों में 500 उत्सव होते हैं. ऋतुचर्या, दिनचर्या, प्रकृतिचर्या का सीधा संबंध इन उत्सवों से जुड़ा हुआ है. अपने जीवन में त्याग का संकल्प करने का नाम उत्सव है. रक्षाबंधन का समय चातुर्मास का होता है, जो सृजन का भी समय है. अतः इस समय मन में जो बीज डालेंगे, वह भी बहुत फलदाई होगा. मन को ऊपर उठाने के लिए प्रतिदिन साधना आवश्यक है. प्रकृति नीचे की ओर खींचती है और मनुष्य को ऊपर जाना है. इस संकल्प के लिए उत्सव होता है. भारत में संकल्प सामूहिक होता है. वेदों में ऐसा कोई भी मंत्र नहीं है, जो एक वचन में हो.

रक्षाबंधन उत्सव के संदेश को समझें

मुकुल जी ने कहा कि भारत में शत्रुओं की पहचान करना आवश्यक है. हिन्दुओं की सद्गुण विकृतियों ने उन्हें गुलाम बनाया. हिन्दू सामर्थ्यवान थे, पर सावधान नहीं थे. शत्रु के बोध के बिना रक्षा का बंधन किसी काम का नहीं होता. चाणक्य, कृष्ण, शिवाजी ने शत्रु को पहचाना. पूतना के अंदर के शत्रु भाव को समझने के लिए कृष्ण बनना पड़ता है. कलावा पहनकर लव जिहाद करने वालों को समझना होगा. सोशल मीडिया के माध्यम से जो सांस्कृतिक मार्क्सवाद घरों को तोड़ने का काम कर रहा है, उनसे रक्षण आवश्यक है. जब राष्ट्र के ब्रह्मचर्य का नाश होता है, तब राष्ट्र पतित होता है. साधुवेश धारण कर जब रावण आता है, तब सीता हरण होता है. हिन्दुओं को अपने शत्रु को पहचानना नहीं आता.

भारत में सामूहिक साधना की परंपरा रही है. व्यक्तिगत जीवन की नियमित साधना स्त्री-पुरुष भेदभाव के बिना सभी के लिए आवश्यक है. यह भारतीय विचारधारा है. नई पीढ़ी को इस विचारधारा को आत्मसात करने की आवश्यकता है.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आयुर्वेद संकाय प्रमुख प्रो. प्रदीप कुमार गोस्वामी ने कहा कि व्यावहारिक रूप से ऋतु परिवर्तन पर मौसम के अनुकूल व्यवहार करने हेतु उत्सवों का आयोजन होता है. समरसता और स्नेह का पर्व रक्षाबंधन है.

उपस्थित नागरिकों एवं कार्यकर्ताओं ने एक दूसरे की कलाइयों पर रक्षा सूत्र बांध कर समाज और राष्ट्र रक्षा का संकल्प लिया. कार्यक्रम में उपस्थित बहनों ने भी स्वयंसेवकों की कलाई पर राखी बांधी.
अतिथि परिचय भाग कार्यवाह मनीष तथा संचालन भाग बौद्धिक प्रमुख डॉ. हेमंत मालवीय ने किया‌.

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