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इस्लामिक कानूनों की मांग का औचित्य..???

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यदि भारत में इस्लामिक संगठन ‘ईशनिंदा’ जैसे विवादित कानून की मांग कर रहे हैं, तब इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है. साथ ही यह भी सोचने की आवश्यकता है कि सेकुलर बुद्धिजीवी इस तरह के कानूनों की मांग का विरोध करने की जगह किस कोने में दुबक गए हैं? जब भी देश में समान नागरिक संहिता की मांग उठती है, तब यही बुद्धिजीवी उछल-उछलकर विरोध करते हैं. स्पष्ट है कि वे कहने के लिए सेकुलर हैं, लेकिन उनका आचरण घोर सांप्रदायिक है. उनके व्यवहार में हिन्दू विरोध और इस्लामिक तुष्टीकरण की झलक दिखाई देती है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाल ही में सम्पन्न हुई अपनी एक बैठक में भारत में पाकिस्तान के उस कानून को लागू करने का प्रस्ताव पारित किया है, जिसके तहत मोहम्मद पैगंबर साहब या कुरान के संबंध में अपमानजनक, आपत्तिजनक या आलोचनात्मक बात कहने पर मृत्युदंड का प्रावधान है. पाकिस्तान में इस कानून का दुरुपयोग सुधारवादी मुस्लिमों के विरुद्ध ही नहीं, अपितु गैर-मुस्लिमों को भयाक्रांत करने और उन्हें दबाने के लिए किया जाता है. यह भी देखने में आया है कि सामान्य बात को भी ‘ईशनिंदा’ बताकर अनेक गैर-मुस्लिमों को प्रताड़ित और दंडित किया गया है. क्या भारत जैसे देश में इस प्रकार के सांप्रदायिक कानून की वकालत होनी चाहिए?

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुस्लिम समाज को पिछड़ेपन से निकालकर उसे प्रगति की राह पर ले जाने के प्रयासों की बजाय ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठन उसे अब भी कूपमंढूक ही बनाए रखना चाहते हैं. इस सांप्रदायिक कानून की वकालत करते हुए बोर्ड ने तर्क दिया है कि पैगंबर मोहम्मद साहब के प्रति अपमानजनक टिप्पणियां करने वालों के खिलाफ सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जाती है. इसलिए भविष्य में ऐसे लोगों पर प्रभावी कार्रवाई के लिए एक कानून बनाया जाना चाहिए. बोर्ड का यह तर्क पूरी तरह बेबुनियाद और खोखला है. वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर से लेकर हिन्दू नेता कमलेश तिवारी तक अनेक प्रकरण हैं, जिनमें सामान्य अभिव्यक्ति को भी आपत्तिजनक टिप्पणी बताकर, उन पर कठोर कार्रवाई हुई है. आलोक तोमर को एक पत्रिका में कथित तौर पर मोहम्मद साहब पर बने कार्टून को प्रकाशित करने के लिए तिहाड़ जेल भेजा गया. वहीं, कमलेश तिवारी ने समाजवादी नेता आजम खान की विवादित टिप्पणी का प्रत्युत्तर देते हुए कथित आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिसके लिए उन्हें लंबे समय तक जेल में डाल दिया गया. जबकि वैसी ही विवादित टिप्पणी करने वाला आजम खान खुलेआम घूमता रहा. बाद में, इस्लामिक जिहादियों ने कमलेश तिवारी की हत्या कर दी.

भारत के संविधान और कानून व्यवस्था में पहले से ही ऐसे प्रावधान हैं, जो सबकी धार्मिक भावनाओं को सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम हैं. तब विवादित इस्लामिक कानूनों को भारत में लागू करने का क्या औचित्य है, इस पर संपूर्ण समाज को गंभीरता से चिंतन करना चाहिए. भारत के आम समाज को इस प्रकार की मानसिकता से सतर्क रहने की आवश्यकता है. विश्वास है कि वर्तमान केंद्र सरकार इस प्रकार के सांप्रदायिक कानून पर विचार करने से भी बचेगी.

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