देश में विभिन्न संगठन मीम-भीम एकता दम्भ भरते नहीं थकते, लेकिन धरातल पर वास्वतिकता इसके बिल्कुल विपरीत है. तथाकथित दलित हितैषी संगठन दलितों, जनजाति समाज को अपना बताते नहीं थकते, उनको बरगलाकर प्रताड़ित व दुर्बल करने का कोई अवसर नहीं चूकते. और मुस्लिमों द्वारा इन पर अत्याचार की घटनाओं पर चुप्पी साध लेते हैं. हाल ही के दिनों में घटी कुछ घटनाओं का उल्लेख यहां कर रहे हैं…..
राजस्थान के जोधपुर में एक ट्यूबवेल से पानी खींचने पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने जनजाति समाज के 46 वर्षीय किशनलाल भील की पीट-पीटकर हत्या कर दी, आरोपी ने किशनलाल भील को जातिसूचक गालियां भी दीं और उसके परिवार के सदस्यों को उसे अस्पताल ले जाने की अनुमति नहीं दी. अब तक तीन लोगों शकील, नासिर और बबलू को गिरफ्तार किया गया है और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
मस्जिद के सामने दलित की बारात निकली तो फेंके पत्थर, राजगढ़ में मुस्लिम युवकों ने बैंड-बाजा बंद करवा दिया, और मारपीट की. कुछ मुस्लिम युवकों ने जीरापुर माताजी मोहल्ले में बारातियों पर हमला बोला. बैंड और ढोल की आवाज से इतने आक्रोशित हुए कि बारातियों से मारपीट कर ईंट- पत्थर बरसाए. हमले में बाराती पक्ष के लोग घायल हो गए. इनमें एक पांच साल की बच्ची को गंभीर चोटें आई थीं.
https://www.bhaskar.com/local/mp/rajgarh/news/dabangs-in-rajgarh-129821601.html
मेवात में ऐसी कई जगह हैं, जहाँ अब हिन्दू अपने बच्चों के नाम मुस्लिमों वाले रखते हैं ताकि अगर वे बाहर अपना नाम बताएँ, तो उनकी जान बच जाए. मेवात के हिन्दू अपने यहाँ शादियो में गाने नहीं बजा पाते, क्योंकि मुस्लिम बहुल आबादी के लोग आकर सारा सामान तोड़कर चले जाते हैं. वहाँ पर लड़कियों का अपहरण होना, बारातियों के साथ मारपीट, बहुत आम बात है. मेवात में अधिकांश हिन्दू लड़कियाँ पाँचवीं या छठी क्लास के बाद स्कूल नहीं जाती हैं क्योंकि लोगों को डर होता है कि कहीं उनकी बच्चियों को उठा न लिया जाए. वहाँ कन्वर्जन के लिए तरह-तरह के हथकंडे आजमाए जा रहे हैं. जैसे – डराना, धमकाना, मारना- पीटना, जमीन-घर-श्मशान पर कब्जा कर लेना आदि…
मुरादाबाद (उ. प्र.) में दलित परिवार ने क्षेत्र पलायन की बात करते हुए कहा कि हमें छोड़ कर गाँव में सभी मुस्लिम हैं. ये सारे मुस्लिम हमें भगाना चाहते हैं और हमारे घर पर कब्जा करना चाहते हैं.” ‘प्रधान पति असदुल्ला ने पीटा, फाड़ डाले कपड़े’, तो राजेन्द्र ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया कि उसे इन ‘दरिंदों’ से बचाया जाए, नहीं तो वे उसे भी उसकी माँ की तरह मार डालेंगे.’
टोंक निवासी आमिर अब्बासी नाबालिग को शादी का झांसा देकर भगा ले गया. बाद में पीड़िता ने पुलिस को बताया कि आमिर अब्बासी उसे शादी करने की बात बोलकर अपने साथ ले गया था. कोटा आकर किराए के कमरे में रहने लगे. यहां चार महीने लगातार रेप करता रहा. और मारता-पीटता भी था. कमरे में बंद करके रखता था.
झारखंड के लोहरदगा जिले के कुडू थाना क्षेत्र की रहने वाली जनजाति समाज की विधवा महिला के साथ दुष्कर्म किया. महिला ने आरोपी एक युवक पर दुष्कर्म करने और जाति सूचक गालियां देते हुए मारपीट करने का आरोप लगाया था.
महिला ने आरोप लगाया था कि मारपीट करने के बाद खेत में ही सुल्तान अंसारी ने उसके साथ दुष्कर्म किया. वह गुहार लगाती रही, लेकिन उसने एक न सुनी. https://www.jagran.com/jharkhand/ranchi-muslim-youth-physical-relation-with-tribal-widow-working-in-field-in-lohardaga-jharkhand-23063815.html
संविधान सभा के कार्यकारी अध्यक्ष और पहले स्पीकर जोगेन्द्रनाथ मंडल ने कहा था कि उन्होंने विभाजन के बाद पाकिस्तान को अपना देश इसलिए चुना क्योंकि उनका मानना था कि “मुस्लिम समुदाय ने भारत में अल्पसंख्यक के रूप में अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया है. इसलिए वह अपने देश में अल्पसंख्यकों के साथ न केवल न्याय करेगा, बल्कि उनके प्रति उदारता भी दिखाएगा. जोगेन्द्रनाथ मंडल बाबा साहेब आम्बेडकर के परम अनुयायी थे, पर राजनीतिक स्वार्थ में उन्होंने बाबा साहेब की सीख और सिद्धांतों को बिलकुल भुला दिया था. मंत्री बनने के स्वार्थ में अंधे मंडल को तनिक भी संदेह नहीं हुआ कि जिन्ना जो कह रहा था वो काफिरों (गैरमुस्लिमों) को मूर्ख बनाने का इस्लामिक हथकंडा (अल्तकैय्या) मात्र था. जिसका उद्देश काफिरों को बरगलाकर धोखे में रखना होता है ताकि सही समय आने पर फिर से जिहादी उद्देश्यों की पूर्ति किया जा सके.
जनजाति समाज और दलितों को अपने राजनीतिक लाभ के लिए अपना बताते मुसलमान नहीं थकते. लेकिन अपना मतलब पूरा होते ही वे उनको प्रताड़ित और शोषित करना शुरू कर देते हैं. आज भी इस्लामिक उद्देश्यों की पूर्ति का हथकंडा मात्र ही हैं, चाहे वह ‘मुस्लिम-दलित’ यानि मीम-भीम एकता के जितने भी नारे लगा लें. यह जोगेंद्रनाथ मंडल से लेकर किशनलाल भील तक चली आ रही है, और सख्त कदम न उठाए तो आगे भी इसी तरह चलते रहने की आशंका है. उपरोक्त मात्र कुछ घटनाएं हैं, ऐसी अनेक घटनाएं घटित होती हैं…जो एकता के नारे लगाने वालों की पोल खोलने के साथ ही इन घटनाओं पर नारे लगाने वालों की चुप्पी पर भी सवाल खड़े करती हैं.
विश्व संवाद केंद्र कोकण