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संस्कृत का प्रसार – मध्यप्रदेश के इन गांवों में बच्चा-बच्चा बोलता है संस्कृत

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न्यूज़ीलैंड में लेबर पार्टी के नवनिर्वाचित युवा सांसद डॉ. गौरव शर्मा ने बुधवार को संसद में भारतीय संस्कृति का मान बढ़ाते हुए संस्कृत में शपथ ली. भारत से बाहर संस्‍कृत में शपथ लेने वाले नेताओं में सूरीनाम के राष्‍ट्रपति चंद्रिका प्रसाद भी हैं, जिन्होंने भारतीय संस्कृति की आधार एवं गौरव भाषा संस्कृत में इसी वर्ष जुलाई में शपथ ली थी. वैश्विक मंच से प्राचीन भारतीय संस्कृति का यह उद्घोष हर उस संस्कृति प्रेमी को गौरवान्वित करता है, जिन्हें अपनी संस्कृति पर गर्व है.

विश्व के अलग अलग हिस्सों में संस्कृत और भारतीय संस्कृति का सम्मान फिर से दिख रहा है. इससे असहमत नहीं हुआ जा सकता कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का आधार संस्कृत भाषा है, भारत के विचार का आधार संस्कृत है. जिन वेद, उपनिषद जैसे ग्रंथों को भारत की पहचान माना जाता है वे संस्कृत भाषा में ही लिखे गए हैं और इस भाषा को जाने बिना भारत को नहीं समझा जा सकता.

भारतीयों में भारतीयता के इस प्राचीन भाव के साथ सांस्कृतिक चेतना जाग्रत करने के लिए ‘संस्कृत भारती’ प्रयासरत है. संस्कृत भारती सस्कृत के प्रसार के लिए प्रयास कर रही है. देश के अलग अलग हिस्सों में संस्कृत शिविर संचालित करते हुए भारतीयों को प्राचीन भाषा से जोड़ने का सार्थक कार्य कर रहा है.

संस्कृत भारती का यह अनुभव है कि भारतीयों के विकास का आधार वातावरण, नैतिकता और सुसंस्कार हो सकता है. इन आधारभूत बातों को अंतःकरण में स्थापित करने का माध्यम संस्कृत ही हो सकती है. संस्कृत संस्कार देने वाली भाषा है, भारतीयता के विचारों की अभिव्यक्ति तो संस्कृत में ही है. इसके उच्चारण मात्र से ही व्यक्ति के जीवन जीने की शैली स्वयं भारतीय हो जाती है और यह व्यक्ति के उच्चतम आदर्शों को प्रस्फुटित करता है.

आज देश में अनेक गांव ऐसे हैं, जहाँ संस्कृत आपसी बोलचाल की भाषा बन चुकी है. मध्यप्रदेश का झिरी और मोहद गांव ऐसे ही कुछ गाँवों में शामिल हैं. जहाँ संस्कृत भारती के प्रयासों से संस्कृत जन- जन की भाषा बन चुकी है. यह जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ एक दूसरे का हालचाल जानने के लिए ही नहीं, बल्कि खेतों में हल चलाते किसान, दूरभाष पर बात करते ग्रामीण और नाई की दुकानों पर बाल कटाते समय भी यहां के लोगों की संवाद की भाषा संस्कृत ही होती है. इन गावों में अब कोई यह नहीं पूछता कि संस्कृत सीखने से उन्हें क्या फायदा मिलने वाला है? उन्हें नौकरी मिलेगी या नहीं? ग्रामीण बस इतना ही कहते है – “संस्कृत हमारी प्राचीन भाषा है, हमारे सभी ज्ञान और विचारों की भाषा है संस्कृत, इतिहास और संस्कृति का आधार है संस्कृत!”

झिरी (राजगढ़) कोई सामान्य गांव नहीं, बल्कि यह मध्यप्रदेश के साथ-साथ उत्तर भारत का ऐसा दिव्य ग्राम है. जहां सभी ग्रामीण आपस में संस्कृत में संवाद करते है. खेतों में हल चलाने वाला किसान भी अपने बैलों से संस्कृत में ही आदेश देता है. इस ग्राम में कुल 141 परिवारों के लगभग 976 लोग रहते हैं. ‘संस्कृत भारती’ की ओर से ग्राम के लोगों को संस्कृत सिखाने की शुरुआत सन् 2002 में विमला नामक एक युवती द्वारा की गई थी. एक ही वर्ष में ‘संस्कृत भारती’ ने कुछ ऐसा प्रयास किया कि ग्रामवासियों में संस्कृत की रूचि बढ़ गई, जिसका प्रतिफल यह हुआ कि यहां संस्कृत बोलचाल की भाषा बन गई. आज विमला जी गांव की बेटी है और अगल-बगल के गांव के लिए भी प्रेरणा बन गई है. झिरी गांव के सांस्कृतिक उत्थान के कारण अन्य ग्रामों जैसे मुंडला व सूसाहेडीह के ग्रामीण भी संस्कृत सीखने के लिए झिरी आने लगे हैं.

मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में स्थित मोहद गांव, जिसकी आबादी लगभग 3500 है. यहाँ एक हजार से अधिक लोग संस्कृत में वार्तालाप करते हैं. इस ग्राम में ‘संस्कृत भारती’ के कई शिविर आयोजित हो चुके हैं. इसका असर यह हुआ कि गांव के बच्चे ही नहीं, बल्कि कम पढ़े लिखी महिलाएं भी अब संस्कृत में वार्तालाप करती हैं. यहां के लिए संस्कृत किसी वर्ग विशेष या जाति विशेष की भाषा नहीं, बल्कि हर किसी द्वारा सम्मान एवं गौरवपूर्वक तरीके से वार्तालाप होता है.

भाषा विचारों की सशक्त माध्यम होती है. किसी भी देश की प्राचीन भाषाओं में ही उनके इतिहास, संस्कृति और सभ्यता की कई कहानियां समाहित होती हैं. भारत का वह स्वर्णिम कालखंड जब संस्कृत यहां संवाद की भाषा थी, तब भारत अपने लोक कल्याणकारी विचारों के माध्यम से दुनिया का मार्गदर्शन करता था, भारत विश्वगुरु था.

बदलते कालचक्र में भारत पर कई हमले हुए, न सिर्फ हमारी सीमाओं को तोड़ा मरोड़ा गया. बल्कि यहाँ के मौलिक विचारों को नष्ट करने के लिए हमारी भाषा, संस्कृति, आचार-विचार और व्यवहार तक को बदलने की भरसक कोशिश हुई.

यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि कोई भी जीती हुई जाति, हारी हुई जाति पर आधिपत्य ज़माने के लिए उसका मान भंग करती है, उसके राष्ट्रीय स्वाभिमान पर आघात करती है और अपनी भाषा और विचार को थोपने का प्रयास करती है. भारत के साथ भी ऐसा ही करने का प्रयास किया जाता रहा है, भारत के मौलिक विचार को ध्वस्त करने के उद्देश्य से इस्लामी आक्रान्ताओं द्वारा पहले अरबी फ़ारसी शब्दों को यहां के जीवन में ठुंसा गया, फिर अंग्रेजों द्वारा अंग्रेजी थोपकर हमारे स्वाभिमान को नष्ट किया गया. इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि हम सिर्फ शरीरधारी भारतीय रह गए, विचारों, व्यवहारों और संस्कारों ने हमें इस कदर प्रदूषित किया कि हम अपनी भाषा, संस्कृति और संस्कार को हीन दृष्टि से देखने समझने लगे.

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