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सत्य, करुणा, शुचिता और परिश्रम सभी भारतीय धर्मों के मूलभूत गुण – मोहन भागवत जी

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भोपाल. प्रज्ञा प्रवाह की अखिल भारतीय चिंतन बैठक रविवार (17 अप्रैल) को भोपाल में संपन्न हुई. दो दिवसीय चिंतन बैठक में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी, प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक जे नंदकुमार जी तथा अनेक बौद्धिक एवं वैचारिक संगठनों व संस्थाओं के वरिष्ठ प्रतिनिधि सम्मिलित हुए. देश भर से आए चिंतक, विचारक, लेखक, इतिहासकार, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, अर्थशास्त्री एवं अकादमिक जगत के बुद्धिजीवी व शिक्षाविदों ने हिन्दुत्व के विभिन्न आयामों तथा उसके वर्तमान परिदृश्य पर मंथन किया.

हिन्दुत्व एवं राजनीति पर चर्चा करते हुए एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष तथा एकात्म मानव दर्शन के वरिष्ठ अध्येता महेश चंद्र शर्मा ने कहा कि हमारा राष्ट्रवाद भौगोलिक न होकर भू-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है. विश्व की राजनैतिक राष्ट्र रचना का मानवीकरण होना है तो इसका हिन्दूकरण होना आवश्यक है. संविधान का बहिष्कार नहीं, पुरस्कार भी नहीं बल्कि परिष्कार होना चाहिए. लोकतंत्र का भारतीयकरण करते हुए हमें धर्मराज्य स्थापित करने की दिशा में प्रयत्न करने चाहिए. एकात्म मानवदर्शन में व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि तथा परमेष्ठी एक ही मानव इकाई में समाहित हैं.

राम माधव जी ने कहा कि हिन्दुत्व जीवन शैली नहीं, बल्कि जीवन दृष्टि है, जीवन दर्शन है. आपने बताया कि कैसे सनातन धर्म संपूर्ण विश्व में पहुंचा तथा उसकी वर्तमान स्थिति क्या है. आज कैसे विभिन्न आध्यात्मिक संगठनों के माध्यम से हिन्दू धर्म विभिन्न देशों में पहुंच रहा है तथा उसका आकर्षण दिनों-दिन बढ़ रहा है. वर्तमान वैश्विक समस्याओं का समग्र समाधान हिन्दू धर्म ही देता है. वह पर्यावरण की समस्या हो, स्वास्थ्य समस्या हो अथवा तकनीकी की.

अंत में सभी की जिज्ञासाओं का समाधान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने किया. उन्होंने कहा सत्य, करुणा, शुचिता और परिश्रम सभी भारतीय धर्मों के मूलभूत गुण हैं. हम एकांत में साधना और लोकांत में सेवा करते रहें. धर्म की रक्षा धर्म के आचरण से होती है. हमारे गुण और धर्म ही हमारी संपदा हैं तथा हमारे अस्त्र-शस्त्र हैं. संघ किसी का प्रतिस्पर्धी नहीं है, बल्कि धर्म व राष्ट्र के उत्थान हेतु कार्यरत विभिन्न संगठन, संस्थाओं व व्यक्तियों का सहयोगी है. आह्वान किया कि सभी सुनियोजित रूप से परस्पर सहयोग करते हुए एक श्रेष्ठ मानवता का निर्माण करें.

 

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