करंट टॉपिक्स

यत्र रामो भयं नात्र नास्ति तस्य पराभव:

Spread the love

विजय मनोहर तिवारी

तीन दिन घने कोहरे और सर्दी के बाद आज अयोध्या में सूर्य के दर्शन हुए. जन्मभूमि क्षेत्र में 20 जनवरी के बाद प्रवेश बंद हो जाएगा. दो दिन ही बचे हैं. अयोध्या में उमड़ रहे लोग पुराने स्थान पर विराजित रामलला के दर्शन के लिए लालायित हैं. हरेक के लिए अयोध्या की यह यात्रा अविस्मरणीय बन गई है. पूजा-अनुष्ठान का दूसरा दिन था. प्रात: सरयू के तट से जन्मभूमि स्थान तक निकली कलश यात्रा में मंगल गीत गाती हुई महिलाएँ पवित्र जल कलश लेकर पहुँची. दोपहर मंदिर के गर्भगृह में शुद्धिकरण की प्रक्रिया के पश्चात संगमरमर का चौकोर ऊँचा आसन तैयार किया गया, जिसे स्वर्ण मंडित किया जाना है. रात आठ बजे आम दर्शकों से दूर कड़े पहरे में निर्माणाधीन मंदिर परिसर में पहली बार रामलला की नवनिर्मित मूर्ति को लाया गया. रामसेवकपुरम् के विवेक सृष्टि भवन से रामलला के विग्रह अत्यंत सादगी से निकाले गए. यहीं सात महीने तक कर्नाटक से आई कृष्ण शिला को तराशने का काम चला और मूर्ति चयन के बाद वह घड़ी अब आई, जब रामलला अपने प्रासाद के लिए इस भवन से बाहर निकले. प्राण प्रतिष्ठा के लिए उन्हें विधि विधान से यहीं स्थिर किया गया.

अयोध्या आज एक स्वप्न के शिल्प में ढलने की साक्षी बनी है…

जन्मभूमि पथ के अंतिम सिरे पर सुरक्षा द्वारों से भीतर जाते ही सामने मंदिर का प्रमुख प्रवेश द्वार और लंबा उत्तरी भाग पहले से स्पष्ट दिखाई देने लगा है. मंदिर के दाईं ओर पुराने स्थान पर दर्शन के लिए कतारें लगी हैं. कांटे की जालियों के पार बन रहा नया मंदिर हरेक को यहाँ रोक लेता है. मंदिर अपने विशाल आकार और भव्यता में अद्वितीय रूप से उभर रहा है. आसपास के सदियों पुराने लखौरी ईंट के मंदिरों और भवनों के बीच राजस्थान के शिलाखंडों से निर्मित मंदिर अयोध्या के माथे पर सज रहा राजमुकुट ही है.

रामकथा के पात्रों के परिधान में अयोध्या के कलाकार सुबह से शाम तक भ्रमण पर हैं. हनुमान गढ़ी से जन्मभूमि स्थान तक चौड़े रास्तों पर जत्थों में खड़े लोग अयोध्या के पिछले अनुभव सुना रहे हैं. 1990 और 1992 की कारसेवा में बक्सर के डॉ. ब्रजेश पांडे 18-20 साल की उम्र में आए थे और गोलीकांड में घायल हुए थे. आज जब एक संकल्प पूरा होने जा रहा है, तब उन्हें तो यहाँ आना ही था. दो सौ मीटर दूर से मंदिर का निर्माण उन्हें पुरानी स्मृतियों में ले जा रहा है, जब अयोध्या को एक भय से भरी छावनी बना दिया गया था. साहसी रामभक्त कई-कई दिन पैदल छिपते हुए यहाँ तक आए थे. उन जैसे अनेक ऐसे हैं जो यहाँ पहली बार आ रहे युवाओं को पुरानी अयोध्या की दुर्दशा विस्तार से बता रहे हैं. हर सौ कदम पर ऐसी नुक्कड़ सभाएं सजी हैं.

अतीत के विस्तार में अनकही कटु कहानियों का अंत नहीं है. मगर अयोध्या एक नई दिशा में अग्रसर है…

यहाँ चलते-चलते कौन दिख जाएगा, कोई नहीं जानता. धारावाहिक रामायण के अरुण गोविल, दीपिका और सुनील लहरी भी हनुमान गढ़ी के पास नई नवेली अयोध्या को निहारते नजर आए. हेमामालिनी रामलला के दर्शन करने पहुँची. नेपाल के बाके शहर से भरत प्रजापति अपने भाई के साथ आए. वे दिन में पैदल चले और रात में वाहनों से. आने में छह दिन लगे. कहीं रहने का इंतजाम नहीं है. रामलला को नए घर में देखने की आकांक्षा में इस बार जितना संभव था पैदल चले. मुरैना के रक्के भाई गुर्जर को अपने गाँव से पैदल अयोध्या आने में नौ दिन लगे. वे 22 के बाद गोरखपुर पीठ के दर्शन तक पैदल रहेंगे. पंजाब के फजिल्का से सरदार जसवंत सिंह की टोली अयोध्या में झूमर नृत्य के लिए आई और अपनी प्रस्तुति के बाद वे सब अपनी साजसज्जा उतारे बिना ही मंदिर को बनता हुआ देखने के लिए दौड़े चले आए हैं.

पटना के महावीर मंदिर ट्रस्ट के अमावा मंदिर का प्रवेश द्वार जन्मभूमि स्थान के सबसे महत्वूर्ण मोड़ पर ही है. अपने प्रवेश द्वार पर महर्षि वाल्मीकि रामायण की एक पंक्ति सबका ध्यान आकर्षित कर रही है – यत्र रामो भयं नात्र नास्ति तस्य पराभव:, जिसका अर्थ है – जहाँ राम हैं, वहां भय नहीं और न ही कभी पराजय हो सकती है. दूसरी महत्वपूर्ण पंक्ति है – महर्षि वाल्मीकि के इस सनातन वचन का प्रमाण भव्य राम मंदिर का निर्माण है. जन्मभूमि मार्ग पर कैमरे और मोबाइल लिए युवा अयोध्या के प्रवक्ता बन गए हैं. वे यहां का उत्साह अपने फालोअर्स को बता रहे हैं.

लेखक के फेसबुक से साभार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *