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लोक में राम – राम मंदिर से राष्ट्र मन्दिर की प्रतिष्ठा

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अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पू: अयोध्या

तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः

अथर्ववेद का यह श्लोक अयोध्या का परिचय कराता है. अयोध्या जी, जिसे श्रद्धाभाव से अवधी जनमानस ‘अजुध्या’ कहता है. अजुध्या या अयोध्या की निष्पत्ति अवध्य से मानी जा सकती है, जिसका अर्थ है जो अजेय है, अपराजित है. सहस्त्राब्दियां बीतीं, अयोध्या का स्वर्णिम इतिहास स्वर्णाक्षरों में अंकित होता गया. इसी अयोध्या में त्रेता युग में इक्ष्वाकुवंशीय महाप्रतापी चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में श्रीराम का जन्म हुआ. राम के जन्म की कथा से हम परिचित हैं, जिसमें अयोध्या के ही समीप वर्तमान में बस्ती जनपद के अंतर्गत मखधाम में श्रृंगी ऋषि के मार्गदर्शन में पुत्र्येष्ठि या पुत्र कामेष्ठि यज्ञ का वर्णन आता है. राम के जन्म के मूल में ही लोक कल्याण की अवधारणा निहित है. गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस के बालकांड में लिखते हैं….

विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार.

निज इच्छा निर्मित प्रभु माया गुन गो पार..

कालांतर में मुगल आक्रांताओं द्वारा हिन्दू जनमानस के आस्था के केंद्र व भारतीय समाज को समरसता, नैतिकता व कर्तव्यपालन का बोध कराने वाले श्री राम मंदिर को तोड़कर गुलामी के प्रतीक के रूप में बाबरी ढांचा खड़ा कर दिया गया. 1528 से आरम्भ हुआ श्री राम जन्मस्थान मुक्ति आंदोलन 9 नवम्बर, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय के साथ विराम हुआ. 05 अगस्त, 2020 को मंदिर निर्माण कार्यारंभ पूजन के साथ करोड़ों सनातनियों की भावनाओं ने विविध प्रकार से उत्सव की अभिव्यक्ति की.

इस आंदोलन में साधु संतों ने युद्ध भी किया व आध्यात्मिक जागरण के केंद्र भी बने. वैरागी अभिराम दास जी (योद्धा साधु), मुक्ति आंदोलन के श्लाका पुरुष महंत रामचन्द्र परमहंस जी, महंत अवैद्यनाथ जी, देवरहा बाबा ने पूरे आंदोलन को दिशा प्रदान की. कोठारी बन्धुओं के बलिदान को आज भी हिन्दू जनमानस श्रद्धा से स्मरण करता है. विष्णुहरि डालमिया, अशोक सिंहल वो तेजपुंज हैं, जिन्होंने सनातन ऊर्जा को संग्रहित कर इस पवित्र कार्य में लगाया. मंदिर आंदोलन के मूल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका को हम सब भली भांति जानते ही हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने कहा था कि ‘राममंदिर के मुद्दे पर आंदोलन तभी शुरू करना चाहिए, जब आप इस लड़ाई को अगले तीन दशक तक लड़ने के लिए तैयार हों. ये आपके धैर्य की परीक्षा की लड़ाई होगी. जो इस लड़ाई में पूरे धैर्य के साथ अंत तक लड़ता रहेगा, जीत उसी की होगी’.

ताला खुलने के पश्चात 1989 में ऐतिहासिक शिलान्यास में प्रथम शिला बिहार के कामेश्वर चौपाल ने रखी. इसके बाद एक साथ पूरे देश में आंदोलन छेड़ने की योजना बनी. विश्‍व हिन्दू परिषद ने एकात्मता यात्रा का आयोजन किया.

मोरोपंत पिंगले जी के प्रयास से राम शिलापूजन का अभियान चला, जिसने ग्रामीण भारत में आस्था की धारा को गति दी. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने भी मंदिर आंदोलन में युवाओं का जागरण करते हुए अग्रणी भूमिका का निर्वहन किया. राममंदिर को राष्ट्रीय आस्था के शिखर रूप में उद्घोषित करते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने राष्ट्रीय अधिवेशन में प्रस्ताव भी पारित किया. समाज जागरण करने व कारसेवा में वृहद जनसंपर्क का दायित्व भी परिषद के जिम्मे आया. अयोध्या के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने कारसेवकों की टोली को भोजन देना व उन्हें अगले गंतव्य तक पहुंचाने की भूमिका का निर्वहन किया. राम मंदिर पर फैसला आने के बाद विद्यार्थी परिषद ने आगरा अधिवेशन में अभिनन्दन प्रस्ताव पारित किया तो 2023 में प्राण प्रतिष्ठा के संदर्भ में 69वें राष्ट्रीय अधिवेशन दिल्ली में राष्ट्रीय स्व के केंद्र में राममंदिर को वर्णित किया.

22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में भव्य मंदिर में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. यह दिवस किसी एक मंदिर के उत्सव का नहीं, अपितु देशभर के हिन्दू जनमानस की दृष्टि व विचार को बदलने की उपलब्धि का है. मन्दिर आंदोलन के इतिहास में अनेकों बलिदानियों के रक्त व उनके परिजनों के त्याग का बिंदु समाहित है.

राम मंदिर के प्रति समाज की आस्था इस कदर है कि श्रमदान जब आवश्यक था तो श्रमदान, और मंदिर निर्माण की घोषणा के बाद निधि समर्पण अभियान में राशिदान में भी लोगों ने अप्रत्याशित सहभाग किया. जाति, वर्ग, दल, समूह के सभी बंधनों को ध्वस्त करते हुए राष्ट्र मंदिर के निर्माण का उद्घोष किया.

देश के प्रतिष्ठित जनों, संतों व रामभक्तों की उपस्थिति में 22 जनवरी को होने वाली प्राण प्रतिष्ठा भारतीय मूल्यों, परम्पराओं व रामराज्य की उच्चता का आह्वान करेगी.

राम राज बैठे त्रैलोका। हर्षित भए गए सब सोका॥

बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई॥

श्रीराम के राजगद्दी पर बैठते ही राजकार्य की व्यवस्था को अपने हाथों में लेते ही, तीनों लोक – स्वर्ग, मर्त्य, और पाताल अत्यंत प्रसन्न हुए और उनके सब दु:ख दूर हो गए. राम के प्रताप से सब के मनों के भेद-भाव या कुटिलता नष्ट हो गई, अर्थात् कोई किसी से वैर नहीं करता था. इसी रामराज्य की स्थापना का उत्सव हम मनाने जा रहे हैं. लोकमंगल के कल्याण हेतु प्रतिबद्ध श्रीराम की प्रतिष्ठा होने से अयोध्या विश्व की सांस्कृतिक राजधानी के साथ ही समस्त वसुधा के कल्याण का केंद्र बनेगी.

भारत आनन्दित है, सनातन गर्वित है कि राम आ रहे हैं.

(अंकित शुक्ल, राष्ट्रीय मंत्री, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद)

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