पटना (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय जी होसबले ने कहा कि भारतीय चिंतन को ठीक ढंग से दुनिया समझ नहीं पाई है. यहां जनता की इच्छा सर्वोपरि होती थी, बशर्ते वह मर्यादित और तार्किक हो. भारत में हमेशा जनतंत्र रहा है. राजशाही में भी जनतंत्र के बीज देखने को मिलते थे. कहा कि लोकतंत्र के सही विकास के लिए सत्ता में बैठे लोगों के भी प्रशिक्षण की आवश्यकता है.
सह सरकार्यवाह पटना के दादीजी सेवा समिति स्थित सभागार में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती वर्ष के उपलक्ष्य में दो दिवसीय संगोष्ठी के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे. ‘एकात्म मानववाद के संदर्भ में लोकतंत्र एवं लोकमत परिष्कार’ विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन प्रज्ञा भारती की प्रांतीय इकाई चिति द्वारा किया गया था.
उन्होंने कहा कि लोकमत के परिष्कार के लिए लोकमन का संस्कार आवश्यक है. लोकमत परिष्कार का मतलब केवल वोट देने वाले लोगों के मत का परिष्करण नहीं, बल्कि चुनाव लड़ने वाले लोगों के मत का भी परिष्करण होना चाहिए. लोकमत का अर्थ लोकतंत्र में सिर्फ वोट देने वाला ही नहीं, बल्कि चुनाव लड़नेवाला भी है.
लोकमन संस्कार, लोकमत परिष्कार और सतत लोक प्रशिक्षण से ही लोकतंत्र का आदर्श स्वरूप सामने आयेगा. यह दीनदयालजी के चिंतन में शामिल था. उन्होंने तीनों को एकसूत्र में पिरोकर जागरूक जनता के आधार पर रामराज्य की कल्पना की थी. दत्तात्रेय जी ने शासन में बैठे हुए लोगों को दीनदयाल जी का संपूर्ण चिंतन का मनन करते हुए राज-काज चलाने की सलाह दी, जिससे आदर्श लोकतंत्र की पुनः स्थापना भारतवर्ष में हो सके.
पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि जन और तंत्र में स्वर्णिम संतुलन की आवश्यकता है. आज पाश्चात्य विचारधारा के प्रभाव में जन गौण हो गया है और तंत्र प्रभावी बन गया है. फलतः इंसान में निराशा, हताशा व कुंठा उत्पन्न हो रही है. पाश्चात्य लोकतंत्र से ज्यादा कुछ भी विभेदकारी नहीं है. इन सब का श्रेष्ठ विकल्प एकात्म मानव दर्शन है, जिसे पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने सबके सामने प्रस्तुत किया था. भारत में भले ही पहले राजशाही थी, लेकिन उसमें भी जनतंत्र दिखता था.
उन्होंने श्रोताओं को आगाह करते हुए कहा कि जन और तंत्र में स्वर्णिम संतुलन नहीं रहने के गंभीर परिणाम देखने को मिलते हैं और मिलेंगे. यदि जनतंत्र में तंत्र गौण हो जायेगा और जनता हावी हो जायेगी तो अराजक स्थिति सामने देखने को मिलेगी. वहीं अगर जनतंत्र में जनता गौण हो गई और तंत्र प्रमुख हो गया तो तानाशाही प्रवृत्ति हावी होगी.
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो राकेश सिन्हा ने कहा कि डॉ आंबेडकर जी और दीनदयालजी की विचारधारा लगभग एक थी. दोनों ने अंत्योदय की बात कही थी. राष्ट्रीय संगोष्ठी में विभिन्न राज्यों से आये 74 विद्वानों ने हिस्सा लिया. राष्ट्रीय संगोष्ठी में 41 शोध पत्र प्रस्तुत किये गये. चिति के प्रांत संयोजक कृष्णकांत ओझा ने कहा कि नियमित विचारगोष्ठी व संविमर्श का अयोजन किया जायेगा.
इससे पूर्व 11 अप्रैल को संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ. संगोष्ठी का शुभारंभ पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी ने किया. बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि पंडित दीनदयाल जी ने भारतीय चिंतन परंपरा को आधुनिक संदर्भ में परिभाषित करने का प्रयास किया. उनका एकात्म मानव दर्शन प्रत्येक के लिए अनुकरणीय एवं मननीय है. भाजपा शासित राज्यों में एकात्म मानववाद के अनुसार कार्य करने का सुझाव भी दिया.
एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास संस्थान (नई दिल्ली) के अध्यक्ष डॉ महेशचंद्र शर्मा ने कहा कि स्वदेशी और विदेशी पर व्यापक बहस चल रही है. आवश्यकता है कि स्वदेशी को युगानुकूल तथा विदेशी को स्वदेशानुकूल बनाया जाए. भारतीय चिंतन लोकतंत्र का पुरजोर समर्थक है. यहां कन्याकुमारी से कश्मीर तक की शासन व्यवस्था बगैर किसी हिंसा के बदल जाती है. सांस्कृतिक राजधानी काशी में पतित पावनी गंगा का किनारा होने के बावजूद लोग गंगा माता की प्रतिमा बनाकर पूजन करते हैं तो वहीं प्रख्यात संत कबीर उच्चारित करते हैं- ‘पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहाड़.’ कोटि-कोटि देवता और करोड़ों योनि की जहां परिकल्पना की गई, वहीं सबके सामने भी चार्वाक ने उद्घोषित किया था- ‘यावत् जीवेत् सुखं जीवेत्. ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्..’ जब तक भारतीय मानस को समझा नहीं जायेगा, तब तक सिर्फ चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने चुनाव हारना स्वीकार किया परंतु सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं किया. लोकतंत्र का सुनहरा अध्याय है कि जब पंडित जी ने चुनाव हारा तो सबसे पहले विजयी उम्मीदवार को बधाई दी तथा उस रात एक आम सभा कर विजयी प्रत्याशी को यह बताया था कि अब वह दल का प्रतिनिधि नहीं बल्कि जनता का प्रतिनिधि है.