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अशोक सिंहल श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन के प्राण थे – आलोक कुमार

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विहिप मुख्यालय में चम्पतराय व दिनेश चन्द्र ने भी अर्पित की पुष्पांजलि

नई दिल्ली. विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) मुख्यालय में स्व. अशोक सिंहल जी की जयन्ती के अवसर पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए विहिप के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष एडवोकेट आलोक कुमार ने कहा कि वे श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन के प्राण थे. उन्होंने सम्पूर्ण हिन्दू समाज को झकझोर कर जगाया, संगठित किया तथा एक मजबूत संघर्ष का नेतृत्व किया. वे संतों में भी आदरणीय थे. श्रीराम जन्मभूमि पर जो मंदिर एक राष्ट्र मंदिर के रूप में बन रहा है, उसकी नींव की ईंट के रूप में उन्हें सदैव स्मरण किया जाएगा.

विहिप उपाध्यक्ष एवं श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चम्पत राय ने कहा कि यूं तो अशोक जी पूज्य रज्जू भैया के सम्पर्क द्वारा 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बनते ही समाज जीवन में उतर चुके थे. किन्तु उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ 1981 के वोट क्लब दिल्ली की ‘विराट हिन्दू समाज’ नामक विशाल आयोजन के बाद आया. 1982 में संयुक्त महामंत्री के रूप में विहिप में पदार्पण के साथ ही उन्होंने देश भर में एकात्मता यात्राओं के माध्यम से हिन्दू समाज का जागरण प्रारम्भ किया. तत्पश्चात श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन के विविध चरणों, श्री रामसेतु रक्षा, गौ, गंगा, मठ-मन्दिर, धर्म ग्रन्थ तथा पूज्य संतों के सम्मान के लिए अनवरत संघर्ष किया. अपने वैचारिक विरोधियों से भी उनके मधुर सम्बन्ध थे. वे दृढ़ निश्चयी तथा प्रखर व्यक्तित्व के धनी थे.

दक्षिणी दिल्ली स्थित विहिप मुख्यालय में रविवार को प्रात: 11 बजे आयोजित कार्यक्रम में विहिप की केन्द्रीय प्रबंध समिति के सदस्य दिनेश चन्द्र, केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री स्वामी विज्ञानानंद, कोटेश्वर शर्मा, सहित अन्य गणमान्य लोगों ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए.

महर्षि वाल्मीकि शोध संस्थान द्वारा अशोक जी की जयंती के उपलक्ष्य में ही आयोजित एक वेबिनार में विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि अशोक जी का स्पष्ट मानना था कि जब महर्षि वाल्मीकि के बिना भगवान श्रीराम की कल्पना अधूरी है तो हमारी अनुसूचित जाति, जनजाति व वनवासी बन्धुओं की प्रगति के बिना राष्ट्र भी कैसे आगे बढ़ सकता है? सन् 1989 में उन्होंने काशी के डोम राजा को ना सिर्फ स्वयं उनके घर जाकर विराट हिन्दू सम्मेलन का निमंत्रण दिया और पूज्य सन्तों के मंच के मध्य सत्कार पूर्वक बिठाया. अपितु, उनके यहां भोजन भी किया.

हजारों SC-ST बन्धु-भगिनियों को पुजारी/पुरोहित के रूप में प्रशिक्षत कर मंदिरों व घरों में धार्मिक कर्मकांडों के लिए तैयार करने का बीड़ा उन्होंने ही उठाया था जो आज सामाजिक समरसता के क्षेत्र में अनुपम उदाहरण बन चुका है. एकल अभियान के माध्यम से बिना किसी सरकारी मदद के, आज जिन एक लाख से अधिक ग्राम शिक्षा मंदिरों का संचालन हो रहा है, वह उन्हीं की संकल्पना व अथक प्रयासों का परिणाम है.

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