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घंटाघर से भव्यता के साथ निकली भगवान नरसिंह की शोभायात्रा

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गोरक्ष. हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी गोरखपुर के घंटाघर से परंपरागत भगवान नरसिंह की शोभायात्रा भव्यता के साथ संपन्न हुई. यात्रा में उपस्थित जनमानस को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ जी, गोरक्ष प्रांत के प्रांत प्रचारक रमेश जी ने संबोधित कर होली की शुभकामनाएं दी और गुलाल-फूलों की होली खेली.

गोरखपुर में नरसिंह भगवान की शोभायात्रा की नींव श्रद्धेय नाना जी देशमुख ने रखी थी और रंगोत्सव को नया रंग प्रदान किया था.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बनकर गोरखपुर आये नानाजी देशमुख ने यहाँ की होली में नये रंग भरे. उन्होंने कीचड़ फेंकने, काले रंग व पेन्ट से लोगों के चेहरे खराब करने, शराब पीकर हुड़दंग करने की परिपाटी को बदला, साथ ही परम्परागत रूप से निकलने वाली भगवान नरसिंह की शोभायात्रा की बागडोर अपने हाथ में लेकर गोरखपुर में साफ सुथरी होली की शुरूआत की. हालांकि इसे व्यवस्थित करने में कई साल लगे. अब भगवान नरसिंह की शोभायात्रा पर गोरखपुर गर्व करता है.

नानाजी देशमुख 1940 में गोरखपुर में संघ के प्रचारक बनकर आये थे. उस समय घंटाघर से निकलने वाली भगवान नरसिंह की शोभायात्रा में कीचड़ फेंकना, कालिख पोत देने के साथ ही काले व हरे रंगों का लोग अधिक प्रयोग करते थे. ये नानाजी को खटकता था. उन्होंने युवाओं को संगठित कर परिपाटी को बदलने का बीड़ा उठाया. होली के दिन भगवान नरसिंह की शोभायात्रा के लिये उन्होंने एक हाथी की व्यवस्था की. महावत को सिखाया गया कि जहाँ काला या हरा रंग का ड्रम दिखे, उसे हाथी को इशारा कर गिरवा दें.

ऐसा दो तीन साल किया गया. कुछ अराजक तत्वों ने युवाओं की टीम के साथ नोंक झोंक भी की, लेकिन धीरे धीरे तस्वीर बदलने लगी. इस तरह तीन साल के प्रयास के बाद भगवान नरसिंह की शोभायात्रा में केवल रंग रह गये. काला व हरा रंग, कीचड़ तक का प्रयोग बंद हो गया. आज यह शोभायात्रा गोरखपुर की पहचान बन गई है.

नानाजी के साथ कार्य कर चुके जगदीश प्रसाद व परमेश्वरी जी के अनुसार भगवान नरसिंह की शोभायात्रा घंटाघर से परम्परागत रूप से निकलती है. नाना जी ने कुछ स्वयंसेवकों को तैयार किया और 1944 की होली से स्वयंसेवकों ने शोभायात्रा की बागडोर अपने हाथ में ली. हालांकि व्यवस्थित शोभायात्रा का कैंट थाने में रिकार्ड 1948 से मिलता है.

जगदीश प्रसाद व परमेश्वरी जी बताते हैं कि उस समय हम लोगों की उम्र 14-15 साल थी. नानाजी हमारा नेतृत्व करते थे. हम लोगों ने पूरी शोभायात्रा की बागडोर सम्भाल ली. धीरे-धीरे फुहड़पन का अन्त हो गया. अब यह यात्रा श्रद्धा का प्रतीक है.

पहले कुछ साल स्वयंसेवकों को समस्याओं का सामना करना पड़ा. 1952-53 से स्वयंसेवकों ने घंटाघर पर ध्वज लगाकर प्रार्थना करना और शोभायात्रा को मर्यादित रूप से चलाना प्रारम्भ किया. धीरे-धीरे यह सभी को पसन्द आया. तभी से आज तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की देखरेख में होली की शोभायात्रा निकलती है. अब ये परम्परा बन गई है.

नगरवासी उपस्थित होकर सर्वप्रथम ध्वज के साथ होली खेलते हैं, फिर प्रार्थना होती है. उसके पश्चात् संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं व गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ जी द्वारा भगवान नरसिंह की आरती की जाती है, और शोभायात्रा वहाँ से प्रारम्भ होकर महानगर के विभिन्न स्थानों से होते हुए पुनः घंटाघर पर आकर समाप्त होती है.

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