हरिद्वार. कोरोना की दूसरी लहर के बीच अंतरराष्ट्रीय मीडिया और देश में भी एक वर्ग ने हरिद्वार कुंभ को एक विलेन के रूप में प्रस्तुत किया गया. और यह साबित करने का प्रयास किया गया कि भले ही कोरोना केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक में पहले ही पैर पसार चुका हो, लेकिन इसके प्रसार का केंद्र कुंभ ही है.
जबकि धरातल पर हकीकत बिल्कुल अलग थी. 11 मार्च को महाशिवरात्रि पर हरिद्वार में सबसे ज्यादा 32.37 लाख श्रद्धालु आने का दावा किया गया. इसके 20 दिनों बाद 31 मार्च को प्रदेश में केवल 293 पॉजिटिव केस दर्ज किए गए, जबकि हरिद्वार में इनकी संख्या 70 थी. सरकारी आंकड़ों में अगर रिकवरी रेट की बात की जाए तो यह उस दिन 94.94 फीसद था. संक्रांति के बाद से ही उमड़ने वाली भीड़ के बावजूद अगर मार्च तक ग्राउंड जीरो ही प्रभावित नहीं था तो फिर कुंभ कैसे विलेन हो गया?
यह सभी जानते हैं कि कुंभ का आयोजन संबंधित राज्य सरकारों के लिए बड़ी उपलब्धि का विषय होता है और इसीलिए कई बार आयोजक बढ़ा-चढ़ाकर संख्या पेश करते हैं. नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत 11 मार्च को महाशिवरात्रि पर स्वयं हरिद्वार पहुंचे.
दावे किए गए कि महाशिवरात्रि और तीनों शाही स्नान के दिन लगभग 65-70 लाख भक्त डुबकी लगाकर गए. परिणामस्वरूप, कुंभ को कोरोना स्प्रेडर के रूप में प्रचारित करने वालों को सब कुछ थाली में सजा सजाया मिल गया.
दावों के विपरीत सिर्फ 11 लाख श्रद्धालु ही पहुंचे कुंभ
दैनिक जागरण की पड़ताल के अनुसार वास्तविक आंकड़े दावों से काफी नीचे थे. समाचार पत्र के अनुसार उसने 11 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन और 12 अप्रैल, 14 अप्रैल व 27 अप्रैल के शाही स्नान के दिन हरिद्वार आने-जाने वालों की संख्या की पड़ताल की. सिर्फ महाशिवरात्रि स्नान के दिन बस और ट्रेन से कुल 33,200 यात्री हरिद्वार आए, जबकि चारों स्नान के दिन हरिद्वार में ट्रेन व बस से आने वाले यात्रियों का आंकड़ा लगभग 92,700 रहा. निजी वाहनों से आने वाले यात्रियों की संख्या करीब पांच लाख रही. इस तरह यह आंकड़ा 5,92,700 बैठता है. इसके अलावा पहले से हरिद्वार में ठहरे श्रद्धालुओं, साधु-संतों की संख्या भी अधिकतम पांच लाख मानते हुए जोड़ दी जाए तो कुल संख्या लगभग 11 लाख पहुंचती है, जो 65-70 लाख के दावों से मीलों पीछे है.
राज्य सरकार, मेला अधिष्ठान, हरिद्वार जिला प्रशासन की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, अधिकृत तौर पर हरिद्वार में एक समय में अधिकतम कुल 5.30 लाख व्यक्तियों के ठहरने की व्यवस्था है. हालांकि होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष आशुतोष शर्मा के अनुसार कुंभ काल में हरिद्वार के होटल, लॉज, रिजॉर्ट, गेस्ट हाउस आदि में बमुश्किल 20 से 30 फीसद तक ही बुकिंग हुई. ऐसे में कुंभ अवधि के दौरान कभी भी इस व्यवस्था का अधिकतम उपयोग नहीं हुआ.
15 हजार में से महज 145 पुलिसकर्मी हुए संक्रमित
संक्रमण की बात की जाए तो एक और आंकड़ा रोचक है. पुलिस महानिरीक्षक (मेला) संजय गुंज्याल के अनुसार मेले में 15 हजार पुलिस कर्मियों की तैनाती की गई थी. इनमें से केवल 145 पॉजिटिव हुए.
अप्रैल में उतराखंड में संक्रमण दर 15 फीसद थी तो हरिद्वार में 6.2 फीसद
मार्च और अप्रैल में हरिद्वार जिले में संक्रमण दर, उत्तराखंड की तुलना में काफी कम रही. 11 मार्च को राज्य में संक्रमण दर 0.34 प्रतिशत थी. वहीं, हरिद्वार में महज 0.15 प्रतिशत. अंतिम शाही स्नान 27 अप्रैल को जब पूरे देश में कोरोना की दूसरी लहर ने कहर बरपाया हुआ था, तब उत्तराखंड में संक्रमण दर 15.05 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, जबकि हरिद्वार में यह आंकड़ा केवल 6.2 प्रतिशत ही रहा. यानि ग्राउंड जीरो, जहां इतनी भीड़ जुटी, वही भारी प्रकोप से बचा रहा तो फिर इसे हॉटस्पॉट कैसे कहा जा सकता है.
कुंभ और सरकार को बदनाम करने की साजिश
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने बताया कि कुंभ या कुंभ के बाद जिन राज्यों में संक्रमण तेजी से फैला, उन राज्यों से कुंभ में शामिल होने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या न के बराबर रही. ट्रेन और बस के आंकड़े इस बात के गवाह हैं. इस तरह की बातें फैलाना सनातन धर्म, कुंभ और इसकी व्यवस्था कर रही सरकार को बदनाम करने की साजिश है.
उद्योग व्यापार मंडल के महामंत्री संजीव नैय्यर का कहना है कि कुंभ के दौरान हरिद्वार के बाजारों में अधिकतर समय सन्नाटा छाया रहा. कुंभ में व्यवसाय और व्यापार को गति और लाभ मिलने की जो उम्मीद थी, सब धूमिल हो गई. अब कोरोना संक्रमण के फैलाव की बदनामी बेवजह हाथ लग रही है.
साभार – दैनिक जागरण