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…तो क्रिसमस, न्यू ईयर पर पटाखे प्रदूषण नहीं फैलाते ??

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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के ताजा आदेश के बाद देशभर में चर्चा शुरू हो गई है, लोगों ने प्रतिक्रिया व्यक्त करना शुरू कर दिया है. देश में कोरोना वायरस को आधार बनाते हुए दीपावली पर पटाखे पूरी तरह से प्रतिबंधित थे. अनेक स्थानों पर ग्रीन पटाखों पर भी प्रतिबंद था. हरियाणा व उत्तरप्रदेश की सरकार ने दीपावली वाले दिन थोड़े से समय के लिए पटाखे चलाने की छूट दी थी. बाकी लगभग सभी राज्यों में पटाखे फोड़ना व बेचना पूरी तरह प्रतिबंधित था. यह प्रतिबंध शादियों पर भी लागू रहा.

लेकिन अब एनजीटी ने कहा है कि क्रिसमस और न्यू ईयर को देखते हुए देश के उन क्षेत्रों में जहां एयर क्वालिटी मॉडरेट स्तर पर है, वहां पर रात को 11:55 से 12.30 बजे तक यानि 35 मिनट के लिए पटाखे चलाने की अनुमति होगी.

एनजीटी के निर्णय को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. हिन्दू भावनाओं से खिलवाड़ पर लोगों ने सरकार से कार्रवाई की मांग की. अनेक लोगों ने एनजीटी को पक्षपाती, हिन्दू विरोधी करार दिया. लोगों ने कहा कि क्रिसमस व नए साल पर पटाखे प्रदूषण नहीं फैलाएंगे…..

मेजर सुरेंद्र पूनिया ने ट्वीट किया – “शाबाश NGT, क्रिसमस/नए साल पर 11:50 PM से 12:30 AM के बीच में पटाखे चला सकते हैं”. क्योंकि उससे प्रदूषण नहीं होगा! दीवाली पर इसी NGT के आदेश पर पटाखे चलाने के जुर्म में 850 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था. मी लॉर्ड, आपको इस वैज्ञानिक आविष्कार के लिए नोबेल पुरस्कार क्यों ना मिले?”

भवानी सिंह राजपूत ने लिखा – “अब पटाखे जलाने से प्रदूषण नहीं फैलता? केवल दीपावली पर ही प्रदूषण फैलता है? अब कोविड-19 वायरस का संक्रमण खत्म हो गया है? या कानून का दुरुपयोग हो रहा है, सिर्फ हिन्दू के त्यौहार को प्रतिबंधित करने के लिए?”

बीएन शर्मा ने टाइम्स ऑफ इंडिया के ट्वीट पर प्रतिक्रिया स्वरूप लिखा – “एनजीटी को मध्यम या बेहतर वायु गुणवत्ता वाले स्थानों पर पटाखों की अनुमति क्यों देनी चाहिए, इसे खतरनाक स्तर तक ले जाना चाहिए! एनजीटी पटाखों के उपयोग को लेकर पूरी तरह भ्रमित और पक्षपाती है. इसे क्लीन और ईमानदार होना चाहिए. नहीं का मतलब हमेशा नहीं.”

एनजीटी के निर्णय पर लोगों का व्यंग्य या रोष भी गलत नहीं है. केवल दीपावली ही नहीं, कोई भी हिन्दू त्यौहार समीप आते ही देशभर में एक विशेष वर्ग सक्रिय हो जाता है जो समाचार पत्रों में लेखों से लेकर, सोशल मीडिया, टीवी सीरियल्स, फिल्मों, विज्ञापनों आदि के माध्यम से त्यौहारों पर पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, पशु संरक्षण के तर्क देना शुरू कर देता है. मसलन, होली है तो पानी मत बहाओ, दीपावली है तो पटाखे मत फोड़ो, रक्षाबंधन व करवाचौथ मनाना दकियानूसी है. यहां तक कि दशहरे में जातिवाद ढूंढ लिया जाता है. बुराई पर अच्छाई की जीत के स्थान पर उन्हें रावण में एक ब्राह्मण की मौत नजर आती है.

जबति इसके विपरीत हिन्दू त्यौहारों पर सक्रिय होने वाला यह वर्ग बकरीद पर लाखों करोड़ों की संख्या में होने वाली जीव हत्या, उससे फैलने वाले खून, मांस व खून को धोने में बेकार बहने वाले करोड़ों लीटर पानी और होने वाले प्रदूषण पर चुप्पी साध जाता है. और अब शायद एनजीटी को भी लगता है कि क्रिसमस और न्यू इयर पर फोड़े जाने वाले पटाखे प्रदूषण नहीं फैलाते.

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