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इतिहास को जाने बिना, समाज उन्नति नहीं कर सकता – रविंद्र जी

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ग्वालियर. लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में मुख्य वक्ता अखिल भारतीय सह संयोजक समरसता गतिविधि रविंद्र जी ने कहा कि जो समाज इतिहास का अध्ययन नहीं करता, वह समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता है. इतिहास से कटे हुए समाज की स्थिति जड़ से कटे हुए वृक्ष के समान होती है. अतः हमें सदैव अपने महापुरुषों का स्मरण करना चाहिए. देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए भी इतिहास का स्मरण आवश्यक है. इतिहास के संबंध में कहा कि यदि हम 2000, 1000 व 150 वर्ष के कालखंड पर अलग-अलग विचार करें तो अनेक महापुरुषों के नाम ध्यान में आते हैं. किंतु अट्ठारह सौ सत्तावन के संग्राम के सेनानियों में रानी लक्ष्मीबाई का नाम सर्वाधिक आदर के साथ लिया जाता है.

हमें पढ़ाया गया कि अंग्रेज व्यापार के लिए आए थे और देश में जब उन्होंने अव्यवस्था फैली देखी तो एक-एक कर सभी राज्य अपने हाथ में लेकर शासन करने लगे. यह धारणा पूरी तरह भ्रामक है, इसे हमें अपने मन से निकालना पड़ेगा. वास्तविकता तो यह है कि इस्लाम के अनुयायियों ने अंग्रेजों का समुद्री मार्ग से व्यापार रोक दिया था. हम आज के भू राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में इसका विचार भी अवश्य करें कि समुद्री मार्ग रोक देने के पश्चात् पोप ने पूरी दुनिया को पूर्व व पश्चिम में बांटकर कहा था कि बीच का भाग जो इस्लामिक है, हमें उसको भी ईसाइयत में बदलना होगा. इससे स्पष्ट है कि अंग्रेज व्यापार करने नहीं आए थे, बल्कि उनकी संपूर्ण दुनिया को ईसाइयत में बदलने की योजना थी. अंग्रेज सदैव फूट डालो और राज करो की नीति के आधार पर आगे बढ़ते रहे.

नाना साहब पेशवा, तात्या टोपे तथा लक्ष्मीबाई ने 1857 के संग्राम में पूरे देश में नई चेतना पैदा कर दी. उस समय रानी से लड़ने वाली अंग्रेजी सेना का सेनापति ह्यूरोज रानी की युद्ध कला को देखकर कहता है कि रानी युद्ध में सर्वश्रेष्ठ थी, इससे अच्छी युद्धकला मैंने नहीं देखी. फ्रांस में आजादी के लिए जो संघर्ष हुआ, उस समय वहां की रानी ने जब युद्ध लड़ा तो फ्रांस के लेखक ने उस रानी के चरित्र को फ्रांस की रानी लक्ष्मीबाई बताया था. हमें रानी लक्ष्मीबाई का यह विश्वविख्यात चरित्र भारत की युवा पीढ़ी को बताना होगा. स्वतंत्रता संग्राम के सर्वमान्य नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने महारानी के बारे में कहा कि हमारा सौभाग्य है कि महारानी लक्ष्मीबाई हमारे देश में पैदा हुईं.

अंग्रेजों ने स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं के खिलाफ एक अभियान छेड़ा. उन्होंने सावरकर को कायर, सुभाष चंद्र बोस को जर्मनी व जापान का एजेंट बताया. चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों पर भी बिकाऊ इतिहासकारों द्वारा टीका टिप्पणी करना, अंग्रेजों की इसी नीति का हिस्सा तथा हमें हमारे गौरवशाली इतिहास से दूर रखने का कुत्सित प्रयास है. अंग्रेज व उनके भारतीय पिट्ठू कितना भी कीचड़ उछालें, लेकिन हमें रानी की वीरता व देशप्रेम पर सदैव गर्व रहेगा.

रविंद्र जी ने कहा कि वीरांगना का चरित्र एवं कर्तृत्व आज की महिलाओं को प्रेरणा देने वाला है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी कहा था कि वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई दुर्भाग्य से अपनी झांसी में ही हार गईं, यदि आज वह यशस्वी होतीं तो हमारा भारत देश भी यशस्वी होता.

अनेक इतिहासकारों ने अंग्रेजों के प्रभाव में आकर अनेक मनगढ़ंत बातें लिखी हैं. जबकि 1857 के स्वतंत्रता समर के 2 वर्ष बाद ही इतिहासकारों के गुरु कालमार्क्स ने 1959 में लिखा कि अंग्रेजों ने भारत में स्थानीय लोगों के साथ पशुओं की तरह शोषण किया है, लूट मचाई, राष्ट्रीय स्वाभिमान को आहत किया. यहां के राज्य और संपत्ति का नुकसान किया. इन्हीं के कारण भारत के किसान एवं जनता संतप्त हो गई और नतीजा स्वतंत्रता संग्राम के समर के रूप में सामने आया. यह युद्ध नहीं स्वतंत्रता युद्ध था.

उन्होंने लिखा कि वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ने देश के सभी राजाओं के साथ पत्राचार किया तथा देश की स्वतंत्रता व अखंडता के लिए सहयोग मांगा और विरोधियों को यहां से हटाने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने का आग्रह किया.

आज देश भर की महिलाओं के लिए वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई, जीजामाता एवं रानी चिन्नम्मा आदर्श के रूप में स्थापित हैं और उन्हीं के आदर्शों पर चलते हुए आज की महिलाएं समस्त क्षेत्रें में अपना कर्तव्य सिद्ध कर रहीं हैं, सभी क्षेत्रों में महिलाओं का वर्चस्व है. आज की महिला घर में अच्छी ग्रहणी है, अच्छी मां है, अच्छी बहू है, अच्छी बेटी है, अच्छी पत्नी है और घर के बाहर अच्छी डॉक्टर है, अच्छी शिक्षिका है, अच्छी वकील है.

देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वालों को हमेशा देश स्मरण करता है. उद्बोधन के उपरांत सभी ने महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर श्रद्धासुमन अर्पित किए.

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