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आज भी गहरे हैं पालघर में साधुओं की लिंचिंग के जख्म

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मृदुला राजवाडे

ठीक एक वर्ष पहले, आज के ही दिन अर्थात 16 अप्रैल, 2020 को असंख्य हिन्दू मनों को वेदना देने वाली घटना महाराष्ट्र में घटी. पालघर जिले के गडचिंचले गाँव में दो साधुओं को अमानुषता से मार दिया गया. पत्थरों से कुचलकर, अत्यंत पीड़ा देकर उनकी जान ली गई. इस घटना के वीडियो वायरल हुए और हिंसक पशु समान किये घिनौने कृत्य से अनेकों के मन को वेदना हुई. समाज का दिशा दर्शन करने वाले साधुओं की क्रूरतापूर्ण हत्या समस्त भारत को दुखी कर गई.

पंच दशनाम जूना अखाड़ा के महंत कल्पवृक्ष गिरी जी, महंत सुशील गिरी जी और उनके वाहन चालक नीलेश तेलगडे की गाड़ी एक भीड़ ने रोक ली और उन पर हमला किया. पहले हमले में तीनों घायल हो गए, रात दस बजे पुलिस को खबर करने के बाद भी, पुलिस चौकी नजदीक होकर भी 12.30 बजे पहुंची. पुलिस ने दोनों महंतों को चौकी में बिठाया. तब तक नीलेश तेलगडे की मृत्यु हो चुकी थी. भीड़ ने पुलिस चौकी में घुस कर साधुओं को बाहर निकाला और मारपीट की. इस समय पुलिस वहाँ उपस्थित थी. पुलिस ने ना लोगों को रोकने की कोशिश की और न ही साधुओं की रक्षा के लिये हवा में गोलियां चलाई.

घटना के बाद वामपंथी विचार के प्रसार माध्यमों ने घटना को अलग ही रंग देने का प्रयास किया. साधुओं को कभी चोर तो कभी बच्चे चुराने वाली टोली कहा गया. परंतु, जब घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए तो सच सबके सामने आ गया. पुलिस और जिला परिषद सदस्य काशीनाथ चौधरी की उपस्थिती और दादा आया… दादा आया की आवाज ने संदेह को बढ़ाया. ये घटना जहां हुई, वे छोटे-छोटे जनजातीय गांव (पाडे) हैं. साधुओं की हत्या के समय जमा लोग गडचिंचले के साथ ही दाभाडे, दिवशी एवं दादरा नगर हवेली के कुछ गावों से आए थे. एक अफवाह के कारण साधुओं की हत्या हुई तो इतने कम समय में रात को लोग कैसे इकट्ठा हुए, यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है.

21 अप्रैल को मामला सीआईडी को सौंपा गया. 808 संदिग्ध एवं 118 साक्षीदारों से पूछताछ की गई, 154 लोगों को हिरासत में लिया गया. इन में 11 लोग नाबालिग थे. अब इन में से 81 लोग हिरासत में हैं. वीडियो में दिख रहे कई लोग मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से संबंधित थे. साधुओं की हत्या के बीस दिन बाद तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख ने पालघर की यात्रा की. इस समय काशीनाथ चौधरी देशमुख के साथ दिखाई दिये, घटना में इनकी भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं. हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंपने को लेकर अनेक बार मांग हुई, लेकिन राज्य सरकार ने इसे अनदेखा कर दिया.

साधुओं की हत्या अफवाह के कारण हुई, इसे स्थापित करने के लिए अनेक प्रयास हुए. लेकिन यह वास्तविकता नहीं थी, इसके पीछे सोची समझी साजिश है. क्षेत्र में हिन्दुओं पर हमले की पहली घटना नहीं है. क्रिश्चियन मिशनरीज और वामपंथियों द्वारा जनजातियों को सनातन धर्म से दूर करने का प्रयास लंबे समय से चल रहा है. इसे ध्यान में रखते हुए विश्व हिन्दू परिषद द्वारा वनवासी विकास प्रकल्प शुरू हुआ. केंद्र के व्यवस्थापन के लिये अप्पा जोशी सपत्निक वहाँ पर रहने लगे. वामपंथी गठजोड़ ने दंपति पर भी जानलेवा हमला किया. 90के दशक में यहाँ पर हिन्दुत्व विचारों के स्थानीय व्यक्तियों, उनके घरों पर कई हमले हुए. गोधन, बैल, बकरियाँ मार दी गईं. संपत्ति को जलाया गया.

जनजातीय समाज में हिन्दू धर्म को लेकर भ्रामक बातें फैलाई गई, उन्हें बरगलाया गया. उनके मन में द्वेष का विष घोल दिया गया. आदिवासी एकता परिषद, कष्टकरी संगठन जैसे वामपंथी संगठनों के कार्यकर्ता षड्यंत्रपूर्वक अनेक वर्षों से यह गतिविधियाँ चला रहे है.

जनजाति क्षेत्र में समाज विघातक अनेक शक्तियां सक्रिय हैं. उन्हें रोकने के लिए समाज को एकजुट होना आवश्यक है.

तथाकथित सेकुलर बिरादरी घटना पर चुप रही, उफ तक नहीं की. लेकिन हिन्दू समाज आज भी नृशंस घटना को भूला नहीं है. उन दृश्यों का स्मरण होते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. इसलिए, मामले की सीबीआई जांच और दोषियों को जल्द से जल्द और सख्त से सख्त सजा होना आवश्यक है. तब तक निरपराध साधुओं की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी और हिन्दुओं के मन में जख्म रिसता ही रहेगा.

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