करंट टॉपिक्स

अंग्रेजी को तरक्की की भाषा मानने का औचित्य नहीं

Spread the love

अंग्रेजी की महत्ता से इन्कार नहीं, लेकिन केवल उसे ही तरक्की की भाषा मानने का कोई औचित्य नहीं है. जापान, जर्मनी, फ्रांस, दक्षिण कोरिया आदि देशों ने भी अपनी ही भाषा के आधार पर ही प्रगति की है, न कि अंग्रेजी के बल पर. संपर्क भाषा के रूप में अंग्रेजी का महत्व है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह अन्य भाषाओं पर राज करे.

शिक्षा से जुड़े एक वेबिनार में प्रधानमंत्री ने प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक भारतीय भाषाओं में पाठ्यसामग्री तैयार करने की आवश्यकता बताई, वह नई शिक्षा नीति के अनुकूल ही है. उन्होंने कहा कि प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक भारतीय भाषाओं में कंटेंट तैयार करना होगा. भाषा के कारण गरीब के टैलेंट को मरने नहीं देना है. असम में भी प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय भाषाओं में प्रधानमंत्री का वक्तव्य इसकी पुष्टि करता है कि सरकार भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन यह आसान काम नहीं. इसलिए नहीं, क्योंकि उच्च शिक्षा के स्तर पर पढ़ाई के लिए भारतीय भाषाओं में स्तरीय पुस्तकें तैयार करना एक बड़ी चुनौती है. इस चुनौती को पार किए बगैर देश के विभिन्न हिस्सों में छात्रों को उनकी अपनी भाषा में उच्च शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता. यह भी ध्यान रहे कि इस लक्ष्य को हासिल करने में वह वर्ग बाधक बन सकता है, जिसने अंग्रेजी को श्रेष्ठता बोध से जोड़ दिया है. इस वर्ग ने यह माहौल भी बना दिया है कि आधुनिक जीवन की भाषा तो अंग्रेजी ही है. आवश्यक केवल यही नहीं है कि प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में दी जाए, बल्कि यह भी है कि स्कूली शिक्षा के स्तर पर अंग्रेजी के वर्चस्व को तोड़ा जाए. अंग्रेजी एक भाषा के तौर पर तो पढ़ाए जाने की जरूरत है, लेकिन इसके नाम पर जिस तरह उसे पठन-पाठन का माध्यम बना दिया गया है, उससे मुक्ति पाने के ठोस प्रयास करने होंगे.

स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक की पढ़ाई भारतीय भाषाओं में कराने की मुहिम तब आगे बढ़ेगी, जब इन भाषाओं को शिक्षा संस्थानों से इतर भी महत्ता मिलेगी. आखिर अधिकाधिक सरकारी कामकाज भारत की भाषाओं में क्यों नहीं हो सकता? सवाल यह भी है कि हमारी अपनी भाषाएं न्यायपालिका की भाषा क्यों नहीं बन सकतीं? क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि उच्चतर न्यायपालिका में लोग अपनी भाषा में न्याय भी हासिल नहीं कर सकते? क्या कारण है कि संसद में पेश किए जाने वाले विधेयक मूलत: अंग्रेजी में तैयार करने की बाध्यता है?

स्पष्ट है कि भारतीय भाषाओं में पठन-पाठन के कदम उठाने के साथ भारतीय भाषाओं की उपयोगिता बढ़ाने की जो जरूरत है, उसकी भी पूर्ति करनी होगी. यह भी समझा जाना चाहिए कि अंग्रेजी के नाम पर अंग्रेजियत की जो संस्कृति पनप गई है, वह भारतीय भाषाओं के विकास में बाधक बन रही है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *